Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे क्षीरसमुद्रसमीपं गत्वा, ‘खीरोदगं गेहंति'- क्षीरसमुद्रजलं गृह्णन्ति, 'खीरोदगं गेण्हित्ता'-क्षीरोदजलं गृहीत्वा 'जाई तत्थ उप्पलाई जाव सतसहस्स पत्ताई'यानि तत्र क्षीरोदस्थोत्पलानि कमल-कुमुद- नीलोत्पल-पुण्डरीकशतसहस्रपत्राणि तानि गृह्णन्ति 'गेण्हिता'-तानि तानि संगृह्य-'जेणेव पुक्खरोदे समुद्दे तेणेव उवागच्छंति'-यत्र पुष्करोदसमुद्र स्तत्रैवोपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता'-पुष्करोदमुपागत्य, 'पुक्खरोदगं गेण्हंति'-पुष्करोदकं गृह्यन्ति, 'पुक्खरोदगं गेण्हित्ता'पुष्करोदकं गृहीत्वा, 'जाई तत्थ उप्पलाई जाव सत सहस्सपत्ताइ ताई गिव्हंति' यानि तत्रोत्पलानि यावच्छतसहस्रपत्राणि तानि तानि गृह्णन्ति, 'गेण्हित्तागृहीत्वा, जेणेव समयखेत्ते जेणेव भर हेरवयातवासाई'-यत्रैव समयक्षेत्रं पर आये ‘तेणेव उवागच्छित्ता' वहां आकर के उन्होंने 'खीरोदगं गिण्हंति' क्षीरोदक को भरा खीरोदगं गेण्हित्ता' क्षीरसागर के जलको भरकर फिर उन्होंने 'जाई तत्थ उप्पलाई जाव सतसहस्सपत्ताई' जितने भी वहां पर उत्पल यावत्-कुमुदनीलोत्पल पुण्डरीक शतपत्र और सहस्र पत्र कमल थे। 'ताई गिण्हंति' उन सबको लिया 'गिहित्ता जेणेव पुक्खरोदे समुद्दे तेणेव उवागच्छंति' लेकर फिर वे सबके सब जहां पुष्करवर समुद्र था वहां पर आये 'उवागच्छित्ता 'पुक्खरोदगं गेहंति' वहां आकर उन्होंने उसमें से पुष्करोदक भरा 'पुक्खरोदगं गिणिहत्ता जाइ तत्थ उप्पलाई जाव सतसहस्सपत्ताइ ताई गिण्हंति' पुष्करोदक भरकर फिर उन्होंने वहां पर जितने उत्पल यावत् शतपत्र और सहस्र पत्रवाले कमल थे उन सबको लिया 'गिण्हित्ता जेणेव समयखेत्ते जेणेव भरहेरवयाइं वासाई। उन ज्यात दी५ समुद्रोनी क्यमा धने यासता यासता 'जेणेव खीरोदे तेणेव उवागच्छंति' न्यां क्षीशहधि समुद्र तो त्यां ते माव्य। तेणेव उवागच्छित्ता' त्या भावीन. 'खीरोदगं गिण्हंति' क्षीश६४ मयु 'खीरोदगे गिण्हित्ता' क्षीर साभाथी क्षीरसा॥२॥ कसने मारीने ते पछी तेो 'जाई तत्थ उप्पलाइं जाव सतसहस्स पत्ताई' २८सा त्यां २00 यावत् सुभु नासोपस धुरी शतपत्र भने सस पत्र माता 'ताई गिव्हिंति' से मधाने सीधा 'गिण्हित्ता जेणेव पुक्खरोदे समुद्दे तेणेव उवागच्छंति' ते सन पछीथी ते मा ज्यां ५०४२१२ समुद्र तो त्या २ ते २१व्या 'उबागच्छित्ता पुक्खरोदगं गेहंति' त्या मावीन तमास तेमांथी ५४२।१४ मयु 'पुक्खरोदगं गिण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाई जाव सतसहरसपत्ताई ताइं गिण्हंति' ५८४२।४४ बरीने ते पछी तेथे એ ત્યાં આગળ જેટલા ઉત્પલ યાવત્ શતપત્ર અને સહસ પત્રાવાળા કમળ उता से अयाने सीधा 'गेण्हित्ता जेणेव समवायखेत्ते जेणेव भरहेरवयाइं वासाई'
જીવાભિગમસૂત્ર