Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६२ तत्रस्थितमणिपीठिकायाः वर्णनम् २१९ मणिपेढिया पन्नत्ता' अत्र खलु एका महती महाविशाला मणिपीठिका प्रज्ञप्ताकथिता, 'सा णं मणिपेढिया'-सा खलु मणिपीठिका, 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे योजने आयामविष्कम्भाभ्याम्-दैर्घ्यविस्तराभ्यामित्यर्थः, तथा'जोयणं बाहल्लेणं'-योजनमेकं बाहल्येन, 'सव्वमणिमया' सर्वमणिमयाणिसर्वात्मना मणिमचुरा, 'तीसे णं मणिपेटियाए' उप्पि-तस्याः खलु मणिपीठिकाया उपरि भागे, 'एत्थणं माणवए णाम चेइयखंभे पन्नत्ते'-अत्र मणिपीठिकोपरिभागे खलु माणवकनामा चैत्यस्तम्भः प्रज्ञप्तः, स च-'अट्टमाई जोयणाई उडू उच्चत्तेणं'-अर्धाष्टमानि सार्धानि सप्तयोजनानि ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन, 'अद्धकोसं उन्वेहेणं'-अर्धक्रोशं धनुःसहस्र प्रमाणमुद्वेधेनाऽधोभूमिभागे, 'अद्धकोसं विक्खंभेण' अर्धक्रोशं धनुःसहस्रं विष्कम्भेण, 'छक्कोडीए'-षट्कोटिकः, 'छलंसे' पइसिकः, 'छविग्गहिते वइरामयवट्ठलट्ठसंठिए'-षड्वैग्रहिको वज्रमयवृत्तलट्ठसंस्थितः, 'सुसिलिट्ठ परिघट्टमहसुपतिहिते'-सुश्लिष्ट परिघृष्ट मृष्ट एगा महं मणिपीठिया पण्णत्ता' एक बहुत बडी मणिपीठिका-चबुतरा हैं 'सा णं मणिपीठिया' वह मणिपीठिका-'दो जोयणाई, आयामविक्वं भेणं' लम्बाई चौडाई में दो-योजन की है तथा 'जोयणं बाहल्लेणं' मोटाई में एक योजन की है 'सव्वमणिमया' यह सर्वात्मना मणियों की बनी हुई है 'तीसेणं मणिपेढियाए उप्पि' उसमणिपीठिका के ऊपर 'एत्थ णं माणवर णाम चेइए खंभे पण्णत्ते' एक माणवक नामक चैत्य स्तम्भ है 'अट्टमाई जोयणाई उडूं-उच्चत्तणं' यह माणवक चैत्य स्तम्भ साढे सात योजन का ऊंचा हैं 'अद्धकोसं उव्वेहेणं' अधो भूमि भाग में इसका विस्तार आधेकोशका है 'छ कोडीए छलंसे छविग्गहिते वइरामयवट्ठलट्ठसंठिए' इसके ६ कोने हैं, ६ संधियां हैं छ स्थान हैं यह वज्रका बना हुआ है, गोल है और सुन्दर है। 'सुसिलिट्ठपरिघट्ट
पी.61-यमुत। छ. 'सा णं मणिपीठिया' से भाशुपी दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' 5 पडभा में योनी मतावेस छे. तथा 'जोयणं बाहल्लेणं' तेन विस्त॥२ मे योनी छे. 'सव्वमणिमया' को स ४२थी भणियोनी १ अनेस छ. 'तीसेणं मणिपीठियाए उप्पिं' को मणिपानी ५२ 'एत्थ गं माणवए णाम चेइए खंभे पण्णत्ते' से भा४१४ नामनी थैत्यस्तम छ. 'अद्धमाई जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं' से भाप४ चैत्यस्तम्भ सा सात ७॥ योगनती या पाणी छे. 'अद्धकोसं उज्वेहेणं' नीयनी भूमिमामा तना विस्तार अर्धा अशनी छ. 'छकोडीए छलंसे छ विग्गहिते वइरामयवट्ठलट्ठसंठिए' तेना छ भूष्णामा छ. છ સંધિ છે. છ સ્થાન છે. તે વાનું અતિરમણીય બનેલ છે. ગોળ છે. અને
જીવાભિગમસૂત્ર