Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२२०
जीवाभिगमसूत्रे
प्रतिष्ठितः 'विसिडे' - विशिष्टः, 'अणेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्स परिमंडियाभिरामे' - अने कवरपञ्चवर्ण कुडभीसहस्रैः लघुपताका सहस्रैः परिमण्डिताभिराम: वातोद्धृत विजयवैजयन्तीपताकः छत्रातिच्छत्रकलितः तुङ्गो गगनतलमभिलंघ्यमान शिखर : प्रासादिकः, एतदाशयेनैवाह - ' एवं जहा ' - इत्यादि । ' एवं जहा माहिदज्झयस्स वण्णओ जाव पासादीए ' - एवं यथा माहेन्द्रध्वजस्य वर्णको यावत् प्रासादीयः, माहेन्द्रध्वजवदेव माणवकनामक चैत्यस्तम्भस्यापि वर्णनमशेषं कर्त्तव्यं यावत्प्रतिरूप इति । ' तस्स णं माणवयस्स चेइयखंभस्स'
मह सुपइडिया' यह सुश्लिष्ठ है । खरशाण से घिसे हुए पाषाण की तरह सुकुमाणशाण से घिसे हुए पाषाण की तरह यह चिकना है और सुप्रतिष्ठित है विशिष्ट है 'अणेगवर पंचवण्णकुडभिसहस्स परिमंडियाभिरामे' तथा अनेक सुन्दर पांचवर्णोंवाली छोटी छोटी हजारों ध्वजाओं से यह परिमंडित है इससे वह बडा ही सुन्दर दिखता है हवा से कंपित विजयवैजयन्ती पताकाएं सदा हवा से इस पर फहराती रहती है । इस पर छत्रातिच्छत्र भी है यह तुङ्ग - ऊंचा हैं अतः ऊंचाई से यह ऐसा ज्ञात होता है कि मानों यह आकाश - तल को ही उल्लङ्घन कर रहा है यह चित्त को प्रसन्न देखते ही कर देता है इसी अशय को लेकर ' एवं जहा माहिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पासादीए' ऐसा सूत्रपाठ - इसके वर्णन करने के निमित्त कहा गया है तात्पर्य इसका यही है कि इस माणवक चैत्य स्तम्भ का वर्णन यावत् 'पासादीए' इस पाठ तक माहेन्द्रध्वजा के जैसा ही हैं । 'तरसणं माणवयस्स
सुंदर छे. 'सुसिल परिधट्ट मट्ठ सुपइट्टिया' से धन सुष्टि छे. परसाणुर्थी એ घसेला भाषाशुना भेवो थिएो छ भने सुप्रतिष्ठित छे. विशिष्ट छे. 'अणेगवर पंचवण कुडभिसहस्स परिमंडियाभिरामे' तथा अने प्रअरना सुंदर पांयवाशेवाजी નાની નાની હજારો ધજાએથી એ પરિમ`ડિત-સુશેાભિત છે. તેનાથી તે ઘણું જ સુદર દેખાય છે. હવાથી કપાયમાન વન્ય વૈજયન્તી પતાકાઓ હમેશાં તેના પર ફરકતી રહે છે. તેના પર છત્રા તિચ્છત્ર પણ છે. તે ઘણુંજ તુગ છે, અર્થાત્ ઘણું જ ઉંચું છે. તેથી ઉંચાઈ થી તે એવું જણાય છે કે જાણે તે આકાશતલનેજ આળગીરહ્યા છે. તેને જોતાંજ ચિત્તમાં પ્રસન્નતાજ ઉપજે છે. એજ माशय ने सने 'एवं जहा माहिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पासादीए' मा सूत्रपाठ કહેલ છે. આકથનનું તાત્પ એવુ છે કે-આ માણુવક સ્તંભનું વર્ણન યાવત્ 'पासादीए' मा पाई सुधी माहेन्द्रघनना सगा उस वन प्रभागेन छे. 'तस्स णं माणवयस्स चेइयखंभस्स' से भाव चैत्यस्त ́लनी 'उवरि' (५२ 'छक्कोसे
જીવાભિગમસૂત્ર