Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्वे रभ्य ‘अजीवा जीवसंगृहोताः, जीवाः कर्मसंगृहीताः' इत्यन्तः पदसंदर्भो यावत्पदेन ज्ञातव्यः, हे भदन्त ! एतत्सर्वं यदुच्यते देवानुप्रियेण तत्र कि कारणमिति भावः । भगवानाह-' गोयमे'-त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'से जहा णामए केइ पुरिसे' स यथा नामकः कश्चित् पुरुषः, 'बत्थिमाडोवेइ' बस्तिमाटोपयति, बस्तिदृति आटोपयति वायुना प्रपूरयति 'बत्थिमाडोवेत्ता' बस्तिमाटोपयित्वा वरतिं वायुना प्रयित्वा · उप्पि सियं बंधइ' उपरि सितं बध्नाति, उपरिसितंपन्धनं बध्नाति 'बंधित्ता' बद्ध्वा 'मझेग' मध्ये खलु 'गंठिं बंधई' ग्रन्थि बध्नाति, 'बंधित्ता' बद्धा 'उपरिल्लं गंठिं मुयई' उपरितनां ग्रन्थि मुञ्चति, 'मुइत्ता' मुक्त्वा, ग्रन्थि विमोच्य 'उपरिल्लं देसं वमेइ' उपरितनं देशं वमयति-बस्तेरुर्ध्वदेशाद्वायु " यावत् " शब्द से " अविहा लोयट्टिई" से लेकर “ अजीवा जीव संगहिया जीवा कम्मसंगहिया" तक का पाठ ग्रहण किया गया है। इसका भाव वही है, जो पहिले कह दिया गया है कि हे भदन्त ! यह सब जो आप कहते हैं उसका क्या कारण है ? तब प्रभु इस का उत्तर देते हुए कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (से जहा णामए केइ पुरिसे ) जैसे अमुक नानवाला कोई पुरुष (वस्थिमाडोवेह ) मसक को हवा से भर दे (वत्थिमाडोवेत्तो) और मसक को हवा से भर कर (उपि सिंतं बंधइ) फिर वह उसका मुख बांध दे। (बंधित्ता मज्झेणं गंठिं बंधइ) बांध कर उस मसक के बीचमें वह फिर गांठ लगा दे। (बंधित्ता) बीच में गांठ लगा कर वह फिर ( उवरिल्लं गंठि मुयइ ) ऊपर की अर्थात् मसक के मुख की गांठ को खोल दे। (मुइत्ता ) गांठ खोलकर ( उवरिल्ल देसं वमेइ ) उस मसक के ऊपरी भाग से वायु को वह निकाल म "जाव' ५४ 43 "अट्टविहा लोयदिई थी साउने “अजीवा जीवसंगहिया " “जोवा कम्मसंगहिया" सुधीनो पा8 अड] राय छे. तेन। भावार्थ मा કહ્યા પ્રમાણે જ છે કે હે પ્રભો ! આપ લેકસ્થિતિમાં જે આઠ પ્રકાર બતાવે છે तेनुं ॥२६४ ? उत्तर-(गोयमा!) गौतम ! (से जहा णामए केइ पुरिसे) सभ पुरुष ( बत्थिमाडोवेइ ) भश४ने उवा 43 भरी हे. (बत्थिमाडोवेत्ता) मन भरने वाथी भरी छन ( उप्पिं सितं बंधइ) पछी ते भास तेना भुमने मांधी हे. (बंधित्ता मज्झेणं गंठिं बंधइ) २ रीते भशन भुमने माधान तेनी पथ्ये ते शथी is avी है, ( बंबित्ता ) १२ये lis साधीन ( उवरिल्ल गंठिं मुयइ) ७५२नी मेटले भशन! भुमनी isने पछी छ। ना. ( मुइत्ता) पछी ५२नी ने छोडीन (उबरिल्लं देसं वमेइ) ते
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨