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अभिहत ( वि० ) [ अभि + न् +क्त] प्रहृत
( आलं से
भी) पीटा गया, आहत, घायल किया गया --- घाराभिरात इवाभिहतं सरोजं मालवि० ५ 2. जिस पर प्रहार किया गया है, अभिभूत शोक, काम, दुःख 3 बाधामय 4. गुणित |
अमरु० २, पराभूत, ( गण ० )
अभिहतः (स्त्री० ) [ अभि + न् + क्तिन् ] 1. प्रहार करना, पीटना, चोट पहुँचाना 2. ( गण० ) गुणन, गुणा । अभिहरणम् [अभि + हृ + ल्युट् ] 1. निकट लाना, जाकर
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लाना -- रघु० ११/४३, 2. लूटना । अभिवः | अभि + + अ ] 1. आवाहन आमंत्रण 2. पूर्ण रूप से यज्ञानुष्ठान 3. यज्ञ, बलिदान । अभिहारः [ अभि + ह् + घन्] 1 ले जाना, लूट लेना, चुरा लेना 2. हमला, आक्रमण 3. शस्त्रास्त्र से सुसज्जित करना, वस्त्र ग्रहण करता । अभिहास: [ अभि + स् +घञ् । दिल्लगी, मजाक, विनोद | अभिहित (भू० क० कृ० ) [ अभि + धा+क्त] 1. कहा गया, बोला गया, घोषित किया गया, 2. संबोधित किया गया, पुकारा गया । सन० - अन्ययवादः, -- वादिन् (पुं०) नैयायिकों का एक विशेष प्रकार का सिद्धान्त ( या उस सिद्धांत के अनुयायी) । इस सिद्धान्त के अनुसार नैयायिकलोग मानते हैं कि शब्द स्वतंत्र रूप से अपना अर्थ रखते हैं, जो बाद में वाक्य में प्रयुक्त होने पर एक संयुक्त विचार को अभिव्यक्त करते हैं, दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि यह वाक्य के शब्दों का तर्कसंगत संबंध ही है जो वाक्य के अभीष्ट अर्थ को प्रकट करता है न कि शब्दों का केवल अपना भाव । अतः वे 'तात्पर्यार्थ' में विश्वास रखते हैं जो कि वाच्यार्थ से भिन्न है- काव्य. २ । अभिहोम: [ प्रा० स०] घी की आहुति देना । अभी (वि० ) [ न० ब० ] निर्भय, निडर, रघु०९/६३, १५/८/ अभीक ( दि० ) [ अभि + कन् दीर्घः] 1. प्रबल इच्छा रखने
वाला, आतुर 2. कामुक विषयासक्त, विलासी - मेदस्विनः सरभसोपगतानभीकान् - शि० ५१६४, 3. निर्मय, निडर ।
अभीक्षण (वि० ) [ अभि + गुड, दीर्घः] 1. दुहराया हुआ, बार २ होने वाला 2. सतत निरन्तर 3. अत्यधिक,
- क्षणम् (अव्य० ) 1. बारंबार, पुनः पुनः 2. लगातार 3. अत्यंत बहुत अधिक ।
अभीघात = तु० अभिघात ।
अभीप्सित (वि० ) [ अभि + आप् +त्+] चाहा हुआ अभीष्ट, तम् कामना, इच्छा ।
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अ ) (वि० ) [ अभि + आ + न् + नि, उवा ] अभीप्सु इच्छुक, प्राप्त करने की इच्छा वाला । अभी: [ अभिमुखीकृत्य ईश्यति गाः, अभि + ईर् +अच्]
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1. अहीर, गोपाल, गड़रिया 2. ग्वाला, (दे० आभीर) । सम० - पल्ली ग्वालों का गाँव ।
अशाप: [ अभि + प् + घञ ] कोसना, दे० अभिशाप । अभीशुः - बु: [ अभि + अश् + उन् पृषो० अत इत्वम्-अभि
+ इष् + कुवा] 1. वागडोर, लगाम- तेन हि मुच्यन्तामभीराव:- श० १, 2. प्रकाशकिरण - प्रफुल्लतापिच्छनिभैरभीषुभि: शि० ११२२, 'नन् अत्युज्वल, अत्युत्तम 3. इच्छा 4. आसक्ति । अभीषङ्गतु० अभिषंग । अभीष्ट (भू० क० कृ० ) [ अभि + इ + क्त ] 1. चाहा हुआ, इच्छित 2. प्रिय, कृपापात्र, प्रियतम -ष्टः प्रियतम, ष्टा गृहस्वामिनी, प्रेमिका-ष्टम् 1. अभीष्ट पदार्थ 2. रुचिकर पदार्थ - अन्यस्मै हृदयं देहि नानभीष्टे घटामहे - भट्टि० २०/२४ ।
अभुग्न ( वि० ) [ न० त०] 1. जो झुका हुआ या टेढ़ा मेढ़ा न हो, सीधा 2. स्वस्थ, रोगमुक्त ।
अभुज ( वि० ) [ न० ब० ] बाहुरहित, लूला । भुजिष्या [न० त०] जो दासी या सेविका न हो, स्वतन्त्र स्त्री |
अभूः [न० त०] विष्णु, जो पैदा न हुआ हो । अभूत ( जि० ) [ न० त०] सत्ताहीन, जो हुआ न हो, अविद्यमान, अवास्तविक, मिथ्या । सम० - आहरणम् अवस्तु कथन, कपटपूर्ण वा व्यंगमय बात कहना, --तद्भावः जो पहले विद्यमान न हो उसका होना, या बनना, या बदलना अभूततद्भावे च्विः, अकृष्णः कृष्णः संपद्यते तं करोति कृष्णीकरोति - सिद्धा० तु० पयोघरीभूतचनुः समुद्राम् - रघु० २०३, पूर्व ( वि० ) जो पहले न हुआ हो, जिससे आगे कोई न बढ़ा होअभूत 'व राजा चिंतामणिर्नाम, वासव० १, देणी ० ३२, प्रादुर्भावः जो पहले न हुआ हो उसका प्रकट होना, शत्रु (वि०) शत्रुहीन, जिसका कोई शत्रु न हो ।
अभूति: ( स्त्री० ) [ न०त०] 1. सता हीनता, अविद्यमा जनता 2. निर्धनता ।
अभूमिः (स्त्री० ) [ न० त०] 1. भूमि का न होना, भूमि को छोड़कर अन्य कोई पदार्थ, 2. अनुपयुक्त स्थान या पदार्थ, अनुचित स्थान - अभूमिरियमविनयस्य श० ७, स खलु मनोरथानामप्यभूमिविसर्जनावसरसंस्कार: त०] मेरी आशाओं से बहुत अधिक आगे बढ़ा हुआ -- ० ११४२ ।
अभृत, अभूत्रिम (fro ) [ न० त०] 1. जिसका भाड़ा न दिया गया हो 2. जिसको समर्थन प्राप्त न हो । अछेद ( वि० ) [ न० ०] 1. अविभक्त 2. समरूप, वही
--द: [न० त०] 1. भिन्नता का अभाव, समरूपता या समानता का होना, तद्रूपकमभेदो व उपमानोपमे
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