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अभिष्टवः [अभि+स्तु+अप्] प्रशंसा, स्तुति । । अभिसम्बन्धः [अभि+सम्+बन्ध+घा] संबंध, रिश्ता, अभिष्यं (स्य) दः [अभि+स्यन्द्+घञ] 1. स्राव, बहाव, । संयोजन, संपर्क, मैथुन-मनु० ५/६३ । टपकना 2. आंख आना 3. अतिवृद्धि, अतिरेक, | 'अभिसम्मुख (वि.) [प्रा० ब०J संमुख होने वाला, सामने आधिक्य, अतिरिक्त भाग, स्वर्गाभिष्यन्दवमनं कृत्वे- ___खड़ा हुआ, सम्मान की दृष्टि से देखने वाला। वोपनिवेशितम् (ओषधिप्रस्थम्) कु. ६।३७, अति- | अभिसरः [अभि+सृ+-अच्] 1. अनुगामी,अनुचर,2. साथी। रिक्त जनसंख्या को दूर करके, अर्थात् उत्प्रवासन | अभिसरणम् [अभि+स+ल्युट्] 1. उपागमन, मुकाबला द्वारा-तु०-रघु० १५।२९।।
करने के लिए जाना, 2. सम्मिलन, संकेतस्थान, नायक अभिष्वङ्गः [अभि+स्व+घञ्] 1. संपर्क 2, अत्यधिक या नायिका द्वारा मिलने का स्थान नियत करना
आसक्ति, प्रेम, स्नेह, -विद्यास्वभिष्वंगः-दश०१५५, त्वदभिसरणरभसेन वलन्ती पतति पदानि कियन्ति अहो अभिष्वङ्गः-मा० १।
चलन्ती-गीत०६। अभिसंधयः [अभि+सम्+श्रि+अच] शरण, आश्रय । | अभिसर्गः [अभि+सृज+घञ] सृष्टि, रचना । अभिसंस्तवः [अभि-सम्+स्तु+अप्] महती प्रशंसा ।। अभिसर्जनम् [अभि+सृज+ल्युट्] 1. उपहार, दान 2. अभिसंतापः [अभि-+सम्+तप्+घञ] युद्ध, संग्राम, हत्या । __ संघर्ष-जन्यं स्यादभिसन्ताप: -हला।
अभिसर्पणम् [अभि+सुप+ल्युट] उपागमन, मुकाबला अभिसन्देहः [अभि+सम्+दिह+घा] 1. विनिमय, 2. ____ करने के लिए शत्रु के निकट जाना। जननेन्द्रिय ।
अभिसा (शा)त्वः,-त्वनम् [अभि+सान्त्व+घञ, ल्युट् अभिसन्धः-धकः [अभि-+सम्+धा+क, स्वार्थे कन् च] वा] सुलह, समझौता, ढाढस, तसल्ली।
1. धोखा देने वाला, वंचक, 2. निन्दक, लांछन | अभिसायम् (अव्य०) [अव्य०स०] सूर्यास्त के समय, संध्यालगाने वाला।
समय-श्रितोदयारभिसायमुच्चकैः-शि० १११६ । अभिसन्धा [अभि+सम्+घा+अ+टाप] 1. भाषण, । अभिसारः [अभि+सृ+घा] प्रिय से मिलने के लिए
उद्घोषणा, शब्द, कथन, प्रतिज्ञा,-तेन सत्याभिसन्धेन जाना, (मिलन स्थान) नियत करना या स्थिरकरना, त्रिवर्गमनुतिष्ठता-रामा०, वचन का पालन करने -रतिसूखसारे गतमभिसारे मदनमनोहरवेशम-गीत०५, वाला, 2. धोखा।
२. वह स्थान जहाँ नायक नायिका नियत समय पर अभिसन्धानम् अभि+सम्+घा+ल्युट] 1. भाषण, शब्द, मिलते हैं, संकेतस्थल,-त्वरितमपैति म कथमभिसारम
सोद्देश्य उद्घोषणा, प्रतिज्ञा, · सा हि सत्याभिसन्धाना- गीत० ६, 3. हमला, आक्रमण, --श्वोऽभिसारः पुरस्य रामा०, 2. ठगना, धोखा देना - पराभिसन्धानपरं न:--रामा०। सम-स्थानम् मिलने के लिए उपयद्यप्यस्य विचेष्टितम्-रघु० १७७६ 3. उद्देश्य, युक्त स्थान, दे० 'अभिसारिका' के नीचे। इरादा, प्रयोजन-अन्याभिसन्धानेनान्यवादित्वमन्यक- अभिसारिका [अभि+स+ण्वल+टाप] वह स्त्री जो अपने र्तृत्वं च-मिता० 4. सन्धि करना।
प्रिय से मिलने जाती है, या उसके द्वारा नियत संकेत अभिसन्धायः =अभिसंधि ।
का पालन करती है कु० ६।४३, रघु० १६।१२, अभिसन्धिः अभि+सम्+धा+कि] 1. भाषण, सोद्देश्य -कान्तार्थिनी तु या याति सङ्कतं साभिसारिका-अमर०
उद्घोषणा, प्रतिज्ञा 2. इरादा, लक्ष्य, प्रयोजन, उद्देश्य सा० द. निम्नांकित ८ स्थान नायक नायिकाओं के 3. निहितार्थ, अभिप्रेत अर्थ, जैसा कि-अयमभिसंधिः मिलने के लिए निर्धारित करता है (१) खेत (२) (व्याख्यात्मक सूचियों में बहुधा प्रयुक्त) 4. सम्मति, बाग (३) भग्न मंदिर (४) दूती का घर (५) विश्वास 5. विशेष अनुबंध, अनुबंध की शर्ते, प्रति- जंगल (६) तीर्थ स्थान (७) श्मशानभूमि (८) बंध, करार।
नदीतट, क्षेत्र वाटी भग्नदेवालयो दूतीगृहं बनम्, अभिसमवायः [अभि+सम्+अव+इ+अच्] एकता। मालयं च श्मशानं च नद्यादीनां तटी तथा । अभिसम्पत्तिः (स्त्री०) अभि+सम्+पद्-क्तिन] पूर्ण | अभिसारिन् (वि.) [अभि+स-णिनि मिलने, दर्शन
रूप से प्रभावित होना, अपने मत को बदल देना, करने, आक्रमण करने, जाने वाला; जल्दी से बाहर परिवर्तन, बदल जाना।
जाने वाला-युद्धाभिसारिणः-उत्तर० ५,-णी अभिसम्परायः [अभि+सम्+परा+:+अच्] भविष्यत् |
=दे० ऊपर अभिसारिका। काल।
अभिस्नेहः [अभि:+स्निह +घा] आसक्ति, अनुराग, अभिसम्पातः अभि+सम्+पत+पा]1. इकट्ठे मिलना, प्रेम, इच्छा, यः सर्वत्रानभिस्नेहः-भग० २।५७ ।
समागम, संगम 2. युद्ध, संग्राम, संघर्ष, 3. अभि- अभिस्फुरित (वि.) [अभि+स्फुर+क्त] पूर्ण रूप से शाप ।
फैला हुआ, पूर्ण विकसित (जैसे कि फूल)।
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