Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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अग्धस्वामित्व
(८) संयम ---सावधयोग से निवृत्ति अथवा पाप-व्यापाररूप आरम्भ-समारंभों से आस्मा जिसके द्वारा काबू में आये अथवा पंच महावत रूप यमों का पालन अयका पांच इन्द्रियों के जय . को संयम कहते हैं।
(E) बम-सामान्य विशेषात्मक पदार्थ के विशेष अंश का . प्रहम करके केवल सामान्य अंश का जो जिविकल्प रूप से ग्रहण होता है, उसे दर्शन कहते हैं।'
(१०) लेश्या-जिनके द्वारा आत्मा कर्मों में लिप्त हो, जीव के ऐसे परिणामों को लेश्या कहते हैं अथवा कषायोदय से अनुरक्त योगप्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं।'
(११) मध्य-जिस जीव में मोक्षप्राप्ति की योग्यता हो उसे भव्य कहते हैं।
(१२) सम्यक्त्व-छह द्रव्य, पंच अस्तिकाय, नव पदार्थ सात तत्वों का जिनेन्द्र देव ने जैसा कथन किया है, उसी प्रकार में उनका श्रद्धान करना अथवा तत्त्वार्थ के श्रद्धान को सम्यक्त्व कहते हैं।
१ दर्शन शासन सामान्यानबोध लक्षणम् ।
--- शम समुच्चय २०१५ २ (क) लिई अपा की रइ एयाए शियय gur |च । जीचोसि होई लेसा लेसागुणजाण्यखाया ?
___ यससंग्रह १४२ (ख) भावलेश्या कषायोदयरजिता सापश्यतिरिति कृत्वा औदयकोत्युच्यते ।
सर्वार्थसिद्धि सई ३ (क) छह दल पद पयस्था सस्त तच्च शिदिवा । सदहाइ ताण रूवं सो सहिट्ठी भुणेभयो ।।
-वर्शनपाहब ११२ (ख) तस्वार्थश्रमानं सम्यादर्शनम् ।
-- तत्स्वार्थपून १२