Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 246
________________ গীয় বন্ধ ; বিচ্ছি पणसीइ सयोग अजोगि दुचरिमे देवखगइ गंधदुगं । फास बन्नरस तणु बन्धण संघायपण निमिणं ॥३१॥ संघयणअधिरसंठाणं छाक अगुरुलड्नुचाउ अपज्जतं । सायं व असायं धा परिसुवंगतिग सुसर नियं ॥३२॥ बिसयरिखओय चरिमे तेरस मणुयतसतिग जसाइन्छ । सुभगजिणुच्चपणिदिय सायासाएगयरछेओ ॥३३॥ नरअणुपुतिय विणा वा बारस चरिम समर्थमि जो खविडं। पत्तो सिद्धि देविन्दवं दियं नमह तं वीरं ॥३४।। ॥ द्वितीय कर्म ग्रन्थ को गायाएं समाप्त ॥ m

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