Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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समूल- बांस की जड़ (मायाकषाय के एक भेद की उपमा )
बहर---- वज्रऋषभ नाराच संहनन
-स्वीला
वज
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यज्ञरिसनाराय वचषभ नाराच संहनन वजनवग्ग - व्यंजनावग्रहः मतिज्ञान
डोड़कर के
बस -- वर्तमान
वढमाणय - वर्धमान ( अवधिज्ञान का भेद विशेष )
वन-वाणव्यन्तर देव
वणवणं नामकर्म
यत्र वर्ण नामकर्म
वस -- बैल अधीनता
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- वामन संस्थान
वामण
विजय (उण्य) – वैन्यि शरीर नामकर्म तथा वैक्रिय काययोग विजय- वैक्रिय अष्टक (वैक्रिय पारीर आदि आठ प्रकृतियाँ)
दिग्ध - विघ्न, अन्तराय कर्म
fare - विकलेन्द्रिय
fareललिग विकलत्रिक
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विजिणू छोड़कर
विसि दरबान
विमासा - परिभाषा-संकेत
विमल विमलमति मनः पर्यायशान
ततीय कर्मप्रम्य: परिशिष्ट
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विवस्थ--- (विवज्जय-विवरीय) विपरीत, उल्टा
दिवाग - विपाक, फल ( प्रभाव, असर)
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