Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 248
________________ २२० तृतीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट इय जगणं त्रि नरा परमजया सजिण ओहु देसाई । अपजत्ततिरियनरा || जिला शत्रसल निरय व सुरा नवरं आहे मिच्छे इमिदितिगसहिया । कप्पदुगे वि य एवं जिणहोणो जोदभवणवणे ॥१॥ रयण व सर्णकुमाराई आणवाई उजोयचउरहिया | अपजतिरिय व नवरयमिगिदिपुढ विजलतरुविगले ॥। ११॥ छनवइ सासणि विणु सुहमतेर केइ पुण विति चडनवइ' । तिरियनराजहिं विणा तणुपत्ति न ते जैति ॥ १२ ॥ ओहु पणिदि त गइसे जिणिक्कार नरतिगुच्च विणा । मणयजोगे ओहो उरले तरभंग वम्मिस्से ||१३|| आहारछा विणोहे चउदससउ मिच्छि जिणपणगहीणं । सासणि नवइ विणा नरतिरिआऊ सुहृमतेर || १४ || अणचवीसह विणा जिगपणजय सम्मि जोगिणी सायं । विणु तिरिनराउ कम्मे वि एवमाहारदुगि ओहो ||१५|| सुरओहो वेदवे तिरियमराज रहिओ य तमिस्से | defense far far कसाय नव डु व पंच गणा ।। १६ ।। संजलपति नव दस लोभे चउ अजइ दु ति अनापतिगे । बारस अत्रमखु चक्खुसु पहमा अहवाइ चरमचऊ ॥ १७॥ मणनाणि सम जयाई समय छेय वउ हुन्नि परिहारे । केवलिदुगि दो वरमाऽजयाइ नव महसुओहिदुगे || १८ || अड उवसमि च यगि खइए इक्कार मिच्छतिगि देते । सुहृमि सठाणं तेरस आहारगि नियनियंग पोहो ॥१६॥

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