Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 252
________________ २२४ अङ्क--आधा भाग अनाशय अर्धनाराच संहनन अमर - अन्यथा अनाणसिंग अज्ञानत्रिक-मति आदि तीन अज्ञान अनिय—ि अभिवृत्ति बादर संपराय गुणस्थान अपचक्खाण-अप्रत्याख्यानावरण कषाय अपज - अपर्याप्त नामकर्म अपर्याप्त जीव अपत्ति -- समय प्राप्त न होने पर —- www अपमत—अप्रमत्तविरत गुणस्थान अयोगियोगिवली गुणस्यान अरहरति मोहनीय अवलेह - बांस का छिलका अवाय मतिज्ञान का अपाय नामक भेद अविरय अविरत सम्यग्दृष्टि ; अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान अनि असंजी असा असातावेदनीय 2 असुम - (असुह ) — अशुभ नामकर्म A तृतीय फर्मभ्य: परिशिष्ट 1 असुनवर्ग - कृष्ण, नील वर्ण, दुर्गन्ध, तिक्त कटु रस, गुरु, बर रूक्ष, शीत स्पर्श, यह नी प्रकृतियाँ मशुमनवक कहलाती हैं | अहवाय चरिल... यथाख्यात चारित्र आइ आदि, पहला प्रथम www अहम आदेय नामकर्म आइलेसलिंग आदि लेश्यात्रिक – कृष्ण आदि तीन लेभ्याएँ www आयुकर्म

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