Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 245
________________ - fate कर्मन्य को मायायें २१७ सगवन्न खीण दुचमि निद्ददुगंतो य चरमि पणयन्त्रा । नाणंतरायदंसण- चउ सर्वोमि कामेश्व तिथूदया उरलाऽधिरखगइदुग परिततिम छः संठाणा । निमिणतेयकम्माइसंघयणं ॥ २१ ॥ अगुरुल हुवन्नचर दूसर सुसर सायासाएगयरं च तीस वुच्छेओ । वारस अजोगि सुभगाइज्जजसन्नर वेयणिय ॥२२॥ तसति पणिदि मणुया उगइ जिणुच्च ति चरमसमयता । उदउदीरणा परमत्ताईस मेसु ॥ २३ ॥ एसा पर्याडि - विणा वेयणिवाहारजुगल थीण तिगं । मणुयाउ घमत्तंता अजोगि अणुदीरमो भगवं ||२४|| सत्ता कम्माण ठिई बंधाई-लख अत्त-लाभाणं । संते अडवालसयं जा उवसमु विजिणु वियतइए ||२५|| अव्वाचउक्के अतिरि-निरयाउ विणु वियालसयं । सम्माद उसु सत्तम खयम्भ इगवत्त-सयमहवा ||२६|| aai तु पप्प उसु वि पणयाल नरयतिरिसुराउ विणा । सत्तr far raati जा अनियट्टी पढमभागो ||२७|| थावर तिरि निरयायव दुग थीणतिगेग विगल साहारम् । सोलखओ दुवीससयं वियंसि बियतियकसायंती ||२८|| तइयाइ उदसतेरबार छपण चचतिहियसय कमसो | नपुइस्थिहासछगपुंसतुरियकोहमयमायखओ १२६॥ सुहुमि दुसय लोहन्तो खीणदुचरिमेगभओ दुनिख । नवनवद्द चरम समए चउ दंसणनाण विग्वन्तो ॥ ३० ॥

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