Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तृतीय कर्मप्रन्य : परिशिष्ट
अणुगामि वड्डमाणय पष्टिवाईयरविहा छहा ओही। रिउमइ विउलमई मणनाणं केवलमियविहाणं ॥८॥ एस जे आवरण पडुब्ध सुस्त त तयावर देसण घउ पणनिहा वित्तिस दसणावरणं ।।६।। चक्खूदिट्ठि अचय सेसिदिय ओहि केवलेहि च । दसणमिह सामन्नं लम्सावरणं तयं उहा ॥१०॥ सुहपडिबोहा निदा निहानिद्दा य दुक्खपडिबोहा । पयला ठिओविट्ठस पयलपयला य चकमओ ॥११॥ दिचितिग्रस्थकरणी थीणखी अद्धचक्कि अद्धबला। महुलिसखगधारालिहणं व दुहा उ यशियं ॥१२॥ ओसन्नं सुरमणुए सायमसायं तु तिरियनरएसु । मज व मोहशीयं दुविहं दसणचरणमोहा ।।१३।। ईसणमोह तिविह सम्म मोसं तहेव मिच्छतं । सुद्ध अविसुद्ध अविसुद्ध तं हवइ कमसो ॥१४!! जियअजिय पुण्णपावासब संवरबन्धमुक्खनिज्जरणा। जेणं सहइयं तयं सम्म खइगाइबहुमेयं ।।१५।। मीसा न रागदोसो जिणधम्मे अंतमुहजहा अन्ने। नालियरदीवमणुणो मिच्छ जिणधम्मबिवरीयं ।।१६।। सोलस कसाय नव नोकसाय दुविह चरित्तमोहणियं 1 अण अप्पच्चक्वाणा पच्चक्खाणा य संजलणा ॥१७॥ जाजीवरिसचउमासपक्सगा नरयतिरिय नर अमरा । सम्माणुसन्धविरईअहखायचरितपायकरा ॥१८॥
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