Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 239
________________ प्रथम कर्म ग्रन्थ को गाथाएँ जलरेणु पुडविपन्वयराईसरिसो बाविहो कोहो । तिगिसलयाकद्वियसेलत्थंभोवमो माणो ॥ १६ ॥ मायावलेहिंगोमुत्तिमिलसिंगघणवं सिमुलसमा । लोहो हलिदखंजणकद्दमकिमिरागसामाणो ॥ २० }} जस्सुदया होइ जिए हास रई अरइ सोग भय कुच्छा। सनिमित्तिमनहा वा तं इह हासाइमोहणिय ॥२१॥ परिसिस्थि तदुभय पड़ अहिलासो जवसा हवाइ सोउ । यीनरनपुउदयो फफुमतणनगरदाहसमो ॥२२॥ सुरनरतिरिनरयाऊ हडिसरिसं नामकम्म वितिसम । बायालतिनवविहं तिउत्तरसयं च सत्तट्ठी ॥२३॥ गइजाइतणुऊवंगा बन्धणसंघायणाणि संघयथा । संठाणवण्णगन्धरसफास अणुपुब्धि विहागाई ॥२४॥ पिंडपडित्ति चउदस, परधा उस्सास आयवुजोयें । अगुरुलहुतित्थनिमगोवायमिय अपतया ॥२॥ तस वायर पज्जत पत्तेय धिरं सुभं च सुभगं च । सुसराइज्ज जसं तसदसगं थावरदसं तु इमं ॥२६॥ थावर सहम अपज साहारण अथिर असुभ दुभगाणि। दुस्सरणाइजाजसमिय नामे सेयरा वीसं ॥२७॥ तसबउ थिरछक्क अथिरक सुहमतिग थावरचउक्कं । सुभगतिगाइविभासा सदाइसलाहि पयडीहिं ।।२।। वपणच अगुल्लहुबउ ससाइतिर मिस्थाई । इय अनावि विभासा तयाइ संखाहि परडीहिं ॥२६॥

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