Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 242
________________ २१४ तृतीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट सुवभुंभलाईयं । वीरिए च ॥५२॥ | जीवो वि ॥ ५३ ॥ | गोयं दुहच्चनीयं कुलाल इव विग्धं दाणे लाभे भोगुवभोगंसु सिरिरियस जह पडिकूलेण तेण तेण रायाई । न कुणद दाणाईय एवं विग्वेण परिणीत्त निहव उवधाय पस अतरारणं । अच्चासावणयाए आवरण दुर्ग जिओ जयइ ॥ ५४ ॥ ग ुरुभत्तितिकरुणा-वयजोगकसाथ विजयदाणजुओ । धम्माई अज्ज सायमसायं त्रिवज्जय || ५५ ॥ उम्मदेसणामग्गनासणा देवदव्वहरणेहिं । दंसणमोहं जिणमुणिचेश्य संघाइ पडिणीलो ॥ ५६ ॥ दुविहं पि चरणमोहं कसायहा साह विसय विवसमणो । बंधद नरयास महारंभपरिग्गहरओ रुद्दो || ५७॥ तिरियाज गूढहियो सढो ससल्लो तहा मणुस्साउ । पयई तणुकसाओ दारुई मज्झिमग ुणो अ ॥ ५८ ॥ अविश्यमाइ सुराचं बालतवोऽकामनिज्जरो जयद । सरलो अगारविल्लो सुहनामं अन्नहा अहं ॥५६॥ गुणपेही मयरहिओ अज्झयणझावणारुई निच्चं । पकुणइ जिणाइ भत्तो उच्च नीयं इसरहा उ ॥६०॥ जिणपूयाविग्धकरो हिसाइपरायणो जय विग्यं । ar aafaarita लिहिओ देविन्दसूरिहि ६१ ॥ ॥ प्रथम कर्म की गाथाएं समाप्त ॥

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