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तृतीय कर्म अन्य : परिशिष्ट
का पिशप्रसूती
(ज) सद भाष्य वृहद भाष्य
श्लोक प्रमाण रचनाकाल
१११ मा० २४ १४१३ वि० सं० ११:५९
चक्के स्वर सुरि
पूर्णि
बुप्ति
(क) सप्ततिका शिवशर्मसूरि अथवा
चन्द्रषि महत्तर ७५ भाषा अभयदेवमपि गा० १६१ विक्रम की ग्यारहवीं
बारहवीं शताब्दि मलयगिरि ३७८० वि० की १३-१३ बों श. भाष्यत्ति भेरुसुगमूरि ४५५० वि० सं० १४४३ साई शतक जिनवल्लभ गणि गा० १५५ वि १२ वीं शताब्दि यत्ति
बनेश्वर सुरि ३७०० वि० सं० ११७१ नवीन पंच कर्म ग्रन्थ देवेन्द्रसूरि गा० ३०४ वि. की १३-१४-दी स्वोषज्ञ टीका (अधस्वामिता को
वि० की १३-१४ वी छोड़कर)
१०१३१ शताब्दि बन्धस्वामिस्व-अवचरि
४२६ पद क्रर्मग्रन्ध बालपपबोध
जयसोम १०.१० दि० की १७ वी शता. आवप्रकरण विजयविमल गणि गा० ३० वि० सं० १६२३ स्वोपज्ञ वृत्ति अन्धहेतूवयत्रिमंगी हर्षकुलगणि गा० ६५ वि० १६ वीं श वृत्ति
वानरपि गणि ११५० वि० सं० १६०२ बन्धीचयससाप्रकरण विजयविमल गार २४ वि० १७ वीं श. का
गणि स्थोपा अवरि ।
༄༠ག फर्मसंवेशभंग प्रकरण देवचन्द संक्रमकरण प्रेमविजयगणि
वि० सं० १९८५ इस प्रकरण के लेखन में अन साहित्य का वृहद् इतिहास भाग ४ (पार वि० स० सं० बाराणसी) का आधार लिया गया है।