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जम कर्मसाहित्य का संक्षिप्त परिचय
का विवेचन है। इसमें गुणस्थान, जीवसमास, पारित, भाषा, संझा, १६ मारणा और उपयोग इन बीस अधिकारों में जीव की विविध अवस्थाओं का वर्णन किया गया है।
कर्मकाण्ड में कर्म मम्बन्धी निम्न नौ प्रकरण हैं....
(१) प्रकृतिसमुत्कीर्तन, (२) बन्धोदय सत्व, (३) मत्वस्थान भंग, (४) विचलिका, (५) स्थान समुत्कीतन, १६} प्रत्यय, (७) भाव चूलिका, (८) निकरण धूलिका, (६) कास्मितिरचना ।
गोम्पस्मार को टीकाएँ... गोम्मटमार पर सर्वप्रथम गोम्मट रायमामुलराय ने कार में वृत्ति लिम्बी, जिसका अवलोकन स्वयं नेभिसन्द सिमान्त चक्रवर्ती ने किया। इस दृसि के अधार पर केशवदी ने संस्कृत में टोका लिखी । फिर अभय चन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने मन्दप्रबोधिनी नामक संस्कृत टीका लिाही । इन दोनों टीकाओं के आधार पर पं० टोडरमलजी में सम्याशान कन्धिका नामक हिन्दी दीका दिखी । इस टीकाओं के आधार पर जीवकाण्ड का हिन्दी अनुवाद थी पं० सूबचन्द्रग्जी ने व कर्मकाण्ड का अनुवाद श्री पं० मनोहरसालजी ने किया है। श्री जे. जैनी ने इसका अंग्रेजी में सुन्दर अनुवाद किया है। भग्धिसार (क्षपगासार गभित __इसके रचयिता श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती हैं । लब्धिसार में कम से मुक्त होने के उपाय का प्रतिपादन किया है । लब्धिसार की ६४६ पाथाएँ हैं, जिनमें २६१ गाथाएँ हपणासार की हैं । इसमें तीन प्रमाण हैं--(१) दर्शनलब्धि. (२) चारित्रलविध, (३) क्षामिकमारित्र । इनमें हायिक पारित्र प्रकरण क्षपणासार के रूप में स्वतन्त्र नथ भी गिना जाता है।
सन्धिमार पर केशवक्षी ने संस्कस में तथा पंत दोडामाल जी ने हिन्दी में टीका लिखी है । संस्कृत टीका चारिम लम्धि प्रकरण तक ही है। हिन्दी टोकाकार टोडरमसजी ने पारिवनविध प्रकरण तक तो संस्कृत टीका के अनुसार व्याख्यात किया है, किन्तु मायिक जारिन प्रकरपा, अर्थात् क्षपणासार का व्याख्यान माधवचन्द कृत संस्कृत गद्यात्मक क्षपणासार के अनुसार किया है।
यहाँ पर तल्लिखित प्रयों का पूर्ण रूप से अध्ययन किया जाय तो कमसाहित्य का सनस्पी भान प्राप्त हो सकता है ।