Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तृतीध कर्मय : परिशिष्ट प्रदेश, (६) बन्धक, (७) वेवक, (८) उपयोग, (९) मनु स्थान, (१०) व्यंजन, (११) सम्यक्त्व, (१२) देश विरति, (१३) संघम, (१४) पारिवमोहनीय की उपशमना, (:::) गायिली साप
इस स्थान पर अयधवलाकार ने यह भी निवेश किया है कि इसी तरह अन्य प्रकारों से भी पन्द्रह अर्थाधिकारों का प्ररूपण कर लेना चाहिए । इससे प्रतीत होता है कि कषायप्राभूत के अधिकारों की गणना में एकरूपसा नहीं
कषायामत की टीकाएँ-इन्द्रनन्दिकृत श्रुताबहार के उल्लेख के अनुसार कषायमामृत पर निम्नलिखित टीकाएं लिखी गई .....
(१) आचार्य यतिवृषभकुत णिसूत्र, (२) उच्चारणाचार्यकृत उच्चारणावृत्ति अथवा मूल उच्चारण, (३) आचार्य शामकुण्डकृत पद्धति टीका, (४) सुम्बुलराचार्यकृत सूडामणि व्याख्या, (५) चप्पदेवगुरुकृत व्याख्याप्राप्ति वृति, (६) आचार्य वीरसेन जिनसेन कृत जयधवल टीका । इन छह टीकाक्षों में से प्रथम चणि व जयधवला ये दो टीकाएं वर्तमान में उपलब्ध होती हैं । पतिवृषभकृत पूर्णि छह हजार लोक प्रमाण तथा जयधवला टीका सात हजार प्रलोक प्रमाण है। गोम्मदसार
इसके दो भाग हैं--(१) जीवकाण्ड और (२) कर्मकाण्ड । रचयिता मिचन्द्र सिबास्तचक्रवर्ती हैं, जो विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में हुए हैं। ये सामुष्ट राय के समकालीन थे।
गोम्मटसार की रचना चामुण्डराय, जिनका कि दूसरा नाम गोम्पटराय का...-के प्रश्न के अनुसार सिद्धान्त ग्रन्थों के सार रूप में हुई है, अत: इस ग्रन्थ का नाम गोम्मरसार रखा गया। इसका एक नाम पंचसंमह भी है, क्योंकि इसमें मन्ध, बध्यमान, बन्धस्वामी, मन्धहेतु ष बन्धभेद-इन पाँच विषयों का वर्णन है।
गोम्मटसार में १७०५ माथाएँ हैं जिसमें से जीवकाण्ड में ७३३ और कर्मकोच में ९७२ गाथाएँ हैं । जोत्रकाण्ड में महाकर्मप्राभूत के सिद्धास सम्बन्धी जीवस्थान, क्षुद्रबन्ध, बन्धास्वामी, वेदनाखण्ड और वर्गपाखण्ड --- इन पाँच विषों