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तृतीय धर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
स्पर्श कर्म प्रकृति और बन्ध चार अधिकारों का भी अन्तर्भात किया गया है ।
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तीस हजार rte प्रयाण महाबन्ध नामक छ खण्ड में प्रकृतिवन्ध, स्थिति अन्ध, अनुभागन्ध और प्रदेशबन्ध इन चार प्रकार के अन्धों का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है । महाबन्ध की प्रसिद्धि महाघवला के नाम से भी है ।
प्रभृत को टीकाएं - वीरसेनाचार्य विरचित धवला टीका कर्म मास ( षट्खण्डागम) की अति महत्वपूर्ण बृहत्काय व्यास्था है। मूल व्याख्या का ग्रन्थमान ७२००० श्लोक प्रमाण है और रचना काल लगभग विक्रम संवत् ६०५ है ।
इस व्याख्या के अतिरिक्त इन्दनन्दि कृत श्रुतावतार में कर्मप्राभृत की निम्नलिखित टीकाओं के होने का संकेत है। लेकिन वर्तमान में ये टीकाएँ अनुपलब्ध हैं।
कुन्दकुन्दाचार्य में कर्मप्राभूत के प्रथम तीन खण्डों पर परिकर्म नामक बारह हजार श्लोक प्रमाण टीका ग्रन्थ लिखा था । यह टीका ग्रन्थ प्राकृत में था | धवला टीका में इस ग्रन्थ का अनेक बार उल्लेख किया गया है ।
कर्मप्राभृत के प्रथम पाँच
आचार्य शामकुण्ड ने पद्धति नामक टीका ग्रन्थ खण्डों पर लिखा था | कायाभूत पर भी उनकी इसी नाम को टीका थी । इन दोनों टीकाओं का प्रमाण बारह हजार लोक प्रमाण है । भाषा प्राकृतसंस्कृत-कड़ मिश्रित थी।
सुम्बुलूराचार्य ने भो कर्मप्राभूत के प्रथम पनि खण्डों तथा कषायप्राभृत पर एक टीका लिखी थी, जिसका नाम चूडामणि था। यह टीका चौरासी हजार लोक प्रमाण थी और भाषा कन्नड़ थी। इसके अतिरिक्त कर्यप्राभृत के छ खप पर प्राकृत में पंजिका नामक व्याख्या लिखी श्री, जिसका परिभाग सात हजार लोक प्रमाण था ।
समन्तभद्र स्वामी ने प्राभूत के प्रथम पत्र खण्डों पर अड़तालीस हजार श्लोक प्रमाण टीer fret | धवला में यद्यपि समन्तभद्र कृत आप्त