Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जन कसाहित्य का संक्षिप्त परिचय
२०१ भव्य कर्मग्रन्थों की धास्याएं.-बाचार्य देवेन्द्रसूरि में अपने कर्मग्रन्थों पर स्वोपक्ष टीका लिखी थी, किन्तु किसी कारण से तृतीय कमंगन्य की टोका नष्ट हो गई 1 इसकी मूर्ति के लिए बाद में किसी आचार्य ने अवधुरि रूप नई टोका लिखी है। गुणरत्नसूरि व मुनिश्शेखरसूरि ने पांचों कर्मग्रन्थों पर अबरियां लिखी हैं। इनके अतिरिक्त कमलसंयम उपाध्याय आदि ने भी इन कर्मग्रन्थों पर छोटी-छोटी टीकाएं लिखी हैं। हिन्दी और गुजराती भाषा में भी इन पर पर्याप्त विवेचन किया गया है।
हिन्दी भाषा में महाप्राश पं. सुखलाग्न जी की टीकायें करीब ४० वर्ष पूर्व लिखी गई थीं । अब पुनः मरुधर केमरी प्रवर्तक मुनि श्री मिश्रीमलजी म० की ध्याम्यासहित श्री श्रीचन्न सुराना 'मरस एवं श्री देवकमार जैन द्वारा संपादित होकर प्रकार हो रहे हैं। पता : सर मसित फार्मरों से विशिघटता है । दिगम्बर श्वेताम्बर मान्यताओं का लनात्मक अध्ययन एवं अनेक प्रकार के मंत्र य तालिकाएँ भी दी गई हैं। कर्मशमत
इसको महाकर्मप्रकृतिप्राभुत, पट्खायामम आदि भी कहते हैं । इनके रचयिता आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि हैं । इसका रपना समय अनुमानतः विक्रम की दूसरी-सीसरी शताब्दि है।
__ यह ग्रन्थ १६००० लोक प्रमाण है। इसकी भाषा प्राकृत (शौरसेनी) है। आचार्य पुष्पदन्त ने १९५७ सूत्रों में मत्वरूप अंग और आचार्य भूतबलि ने ६००० सूत्रों में शेष सम्पूर्ण अन्ध लिया है । कर्मप्राभूत के छह अण्डों के नाम इस प्रकार है
(१) जीवस्थान, (२) क्षुद्रक बन्ध, (३) बनभस्वामित्वविचय (४) वेदना, (५) वर्गणा, (६) महाबन्ध 1
जीवस्थान के अन्तर्गत आठ अनुयोगद्वार और मी यूलिकाएँ हैं । झुरकवन्ध के ग्यारह अधिकार हैं। बन्धस्वामिस्वविषय में कर्म प्रकृतियों का जीवों के साथ बन्ध, कर्म प्रकृतियों की गुणस्थानों में म्युमिसि, स्योदय इन्ध रूप प्रकृतियाँ, परोदय बन्ध लव प्रकृतियों का कयन किया गया है । वेदना साह में कृति और वेवमा नामक दो अनुयोगद्वार हैं। वाणा खुण्ड का मुख्य अधिकार अन्जनीय है, जिसमें वर्गमाओं का विस्तृत वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें
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