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हेन कर्मसाहित्य का संक्षिप्त परिचय
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है ....स्वोपज वृत्ति एवं मलयगिरिकृत टीका। स्वोपश वृत्ति नौ हजार श्लोक प्रमाण तथा मलयगिरिकृस टीका अठारह हजार श्लोक प्रमाण है।
प्राचीन षट् कम प्रन्य- देवेन्द्र सूरिरचित कर्मग्रन्थ मलीन कर्मपन्य कहे जाते हैं, जबकि उनके आधारभूत पुराने कर्मग्रन्थ प्राचीन कर्म कहलाते हैं । इस प्रकार के प्राचीन कर्मग्रन्थों की संख्या छह है और ये शिवशर्म सूरि आदि भिक्ष-भिन्न आचार्यों की कृतियाँ हैं। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं....
(१) कर्मविपाक, (२) कस्तब, (३) रन्धस्वामित्व, (४) परशीति, (५) शतक, (६) मप्ततिका ।
कर्मविपाक के कर्ता गर्गघि हैं। इनका समय सम्भवतः विक्रम की बसों शताब्दी है । कर्मविपाक को सीन टीकाएं उपलब्ध होती हैं- गरमानन्द सुरिवृत इति, उदयप्रसमूरिकृत दिपा और एक अमात कर्तृक व्याख्या । में तीनों टीकाएं विक्रम की बारहवों-तेरहीं शताब्दी की रचनाएँ प्रतीत होती है। ___ कमरता के कर्ता अमाप्त है । इस पर दो माथ्य एवं दो टीकाएं हैं । टीकाओं में एक गोविन्दाचार्यकृत वृत्ति है और दुमरी अभयप्रभमूरिकृत टिप्पण के रूप में है। इन दोनों का रचनाकाल सम्भवतः विक्रम को सेरही शताब्दी है।
बंधस्वामित्व के कर्ता भी अज्ञात हैं। इस पर हरिभद्रमुरिकृत वृति है, जो वि० सं० ११:१२ में लिखी गई है। ___ पडशीप्ति जिनवल्लभमणि की कृति है और इसकी रचना विश्रम की बारहवीं शताब्दी में हुई है। इस पर दो अज्ञात कर्तृक मारय और अनेक टीकाएँ है । टीकाकारों में हरिभद्रसरि व मलयगिरि मुहम हैं । इसका अपरनाम आगमिकयस्तुविचारसारप्रकरण है। ____ शतक के कर्ता शिवशर्मसूरि हैं। इस पर तीन मास्य, एक नूमि व तीन टीकाएं है। भाष्यों में दो लघु भाष्य हैं और वृहद भाष्य के कर्वा पोश्वरहरि हैं। चूर्णिकार का नाम अज्ञात है। तीन दीकाओं में एक के कर्ता मल
धारी हेमचन्द्र (विक्रम की बारहवीं सतानी), दूसरी के उदयप्रमभूरि और ... तीसरी के गुणरतमुरि (विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी) है ।