Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन-कर्म साहित्य का संक्षिप्त परिचय
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करणों एवं उदय तथा सत्ता इन दो अवस्थाओं का वर्णन किया है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में ग्रन्थकार ने मंगलाचरण के रूप में भगवान महावीर को नमस्कार किया है एवं कर्माष्टक के आठ करण, उदय और सत्ता- इन दस विषयों का वर्णन करने का संकल्प किया है।
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प्रस्तुत ग्रन्थ के अता शिवशर्मसूरि हैं और उनका समय अनुमानत: free at feat शताब्दी माना जाता है । सम्भवतः मे जागमोदारक देवधिaf क्षमाश्रमण के पूर्ववर्ती या समकालीन हों । सम्भवतः ये दशपुत्रघर भी
। लेकिन न स सम्भावनाओं पर प्रकाश डालने वाली सामग्री का प्रायः Tere ही है फिर भी यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि free सूरि एक प्रतिभासम्पन पारंगस विद्वान थे और उनका कर्मविषयक ज्ञान बहुत ही गहन और सूक्ष्म था । कर्मप्रकृति के अतिरिक्त तक (प्राची पंचम कर्मग्रन्थ) भी आपकी कृति मानी जाती है। एक मान्यता ऐसी भी है कि सप्ततिका ( प्राचीन पष्ठ ग्रन्थ) भी आपकी कृति है । दूसरी मान्यता है कि सप्ततिका चन्द्र महत्तर की कृति है ।
कर्म प्रकृति की व्याख्याएँ-- फर्मप्रकृति को तीन व्याख्याएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें से एक प्राकृत पूर्णि है। पूर्णिकार का नाम अज्ञात है । सम्भवतः यह पूर्ण सुप्रसिद्ध चूर्णकार जिनवासमणि महत्तर की हो। संस्कृत की टीकाओं में एक टीका सुप्रसिद्ध टीकाकार मन्त्रयगिरिकृत है और दूसरी न्यायाचार्य यशोfarer है। उन तीनों स्याख्याओंों में अणि का ग्रन्थमान सात हजार श्लोक प्रमाण मलयगिरिकूत टीका का ग्रन्थमान बाद हजार श्लोक प्रमाण तथा यशोविजयकृत टीका का ग्रन्थमान तेरह हजार श्लोक प्रमाण है।
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पंचसंग्रह
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संग्रह में लगभग एक हजार मात्राएं हैं। इनमें योग उपयोग गुणस्थान, कर्मबन्ध बन्धहेतु, उदय, सत्ता, बन्त्र आदि आट करण एवं इसी प्रकार के अन्य विषयों का विवेचन किया गया है। प्रारम्भ में वाठ कमों का नाश करने वाले वीर जिनेश्वर को नमस्कार करके महान अर्थ वाले संग्रह नामक ग्रंथ की रचना का संकल्प किया गया है।
इसके बाद ग्रन्थकार ने 'पंचसंग्रह' नाम की दो प्रकार से सार्थकता बतलाते