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तृतीय कर्मग्रन्थ : परिशित
पदमलेश्या में आदि के ७ गुणस्थान होते हैं, लेकिन इसके सामान्य बन्धस्वामित्व में यह विशेषता है कि तेजोलेश्या के नरकनदक के साथ एकेन्द्रिय त्रिक-एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप का भी बन्ध नहीं होने से सामान्यबन्ध १०८ प्रकृतियों का है और पहले गुणस्थान में तीर्थ करनाम और आहारकद्विक यह तीन प्रकृतियां अबन्ध होने से १०५ प्रकृतियाँ बन्धयोग्य हैं । उनमें से मिथ्यात्व, हुद्र संस्थान, नपुसकवेद, सेवार्त संहनन इन चार प्रकृतियों का बन्धविच्छेद होने पर दूसरे गुणस्थान की बन्धयोग्य १०१ प्रतातियां होती हैं । तीसरे से लेकर सात गुणस्थान तक का Tru बन्धाधिकार के समान समझना पाहिये।