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अतएव इस सम्यक्त्व में सामान्य रूप से ७५ प्रकृतियों का सथा पौधे गुणस्थान में ७५, पांचवें में ६६, छठे में ६२, सातवें में ५८, आठवें में ५८५६२६. नौवे में २२०२११२०।१६।१८, दसवें में १७ और ग्यारहवें गुणस्थान में १ प्रकृति का बन्धस्वामित्व बताया है।
वेदकसम्यक्रन का दूसरा नाम क्षायोपमिक सम्यक्त्व भी है। क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी उदय प्राप्त मिथ्यात्व का क्षय और अनुदयप्राप्त का उपशम करता है। इसीलिए इसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । यह सम्यक्त्व चौथे से सात तक चार गुणस्थानों में होता है। इसमें आहाराविक का भी संघसा इसा बन्धस्वामित्व सामान्य से ७९ प्रकृतियों का और विशेष रूप से मुणस्थाम की अपेक्षा चौथे गुणस्थान में ७७, पांचवें में ६७, छठे में ६३ और सातवे में ५६ या ५८ प्रकृतियों का है । उसके बाद श्रेणी का प्रारम्भ हो जाता है । इसलिए उपशम श्रेणी में उपशम सम्यक्त्व और क्षपक श्रेणी में क्षायिक सम्यक्त्व होता है। ___औपशमिक और क्षायोपामिक सम्यक्त्व में यह विशेषता है कि क्षायोशपमिक सम्यक्त्वी मिथ्यात्वमोहनीय के प्रदेशोदय का अनुभव करता है, और उपशम सम्यक्त्वो विपाकोदय तथा प्रदेशोदय दोनों का ही अनुभव नहीं करता है । क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में मिथ्यात्व मोहनीय के पुद्गल होते हैं, इसीलिए उसे वेदक कहा जाता है । सारांश मह है कि औपशमिक सम्यक्त्व में मिथ्यात्व के दलिकों का विपाक और प्रदेश से भी वेदन नहीं होता है. किन्तु बायोपामिक सम्यक्त्व में प्रदेश की अपेक्षा वेदन होता है।
संसार के कारणभूत तीनों प्रकार के दर्शनमोहनीय कर्म के क्षय से क्षायिक सम्यक्त्व होता है। इस सम्यक्त्व में चौथे से लेकर चौदहवें तक ग्यारह गुणस्थान होते हैं। इसमें आहारकद्विक का बन्ध हो सकता है। इसलिये सामान्य रूप से इसका बन्धस्वामित्व ७९ प्रकृतियों का और गुणस्थानों की अपेक्षा प्रत्येक गुणस्थान में बन्धाधिकार के समान है । अर्थात् अविरत में ७७, देशविरत मैं