________________
Wrrenामि
सामायिक और छेदोपस्थानीय ये दो संयम छठे से लेकर नौवें तक चार गुणस्थान पर्यन्त होते हैं तथा इनमें आहारकद्धिक का भी बन्ध संभव है । अतः इन दोनों में बन्धस्वामित्व सामान्य रूप से ६५ प्रकृतियों का और छठे से लेकर नौवें तक प्रत्येक गुणस्थान में बन्धाधिकार के समान ही है। परिहार विशुद्ध संयम
और मात्रा को गुणस्थान होते हैं । यद्यपि इस संयम के समय आहारकद्धिक का उदय नहीं होता है, किन्तु बन्ध संभव है । अतः इसका बन्धस्वामित्व सामान्य रूप से ६५ प्रकृतियों का और विशेष रूप से बन्धाधिकार के समान छठे गुणस्थान में ६३ और सातवें में ५६ या ५८ प्रकृतियों का होता है।
केवल द्विक - केवलज्ञान और केवलदर्शन--में अन्तिम दो गुण. स्थान-तेरहवां और चौदहवा होते हैं। लेकिन उक्त दो गुणस्थानों में से चौदहवें गुणस्थान में बाध के कारणों का अभाव होने में बन्ध नहीं होता है और तेरहवें गुणस्थान में सिर्फ एक सातावेदनीय कर्म का बन्ध होता है। इसलिए इसका सामान्य और विशेष बन्ध एक सातावेदनीय प्रकृति का ही है।
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिद्विक अवधिज्ञान और अवधिदर्शन इन चार मार्गणाओं में पहले तीन गुणस्थानों में शुद्ध सम्यक्त्व नहीं होने से तथा अन्तिम दो गुणास्थान क्षायिकभाव वाले होने से और इन चारों के सायोपशमिक भाव वाले होने से चौथे से लेकर बारहवें गुणस्थान पर्यन्त नो गुणस्थान होते हैं । इन चार मार्गणाओं में आहारकद्रिक का बन्ध सम्भव होने से सामान्य से ७६ प्रकृतियों का और गुग्धस्थानों की अपेक्षा चौथे से लेकर बारह तक प्रत्येक गुणस्थान में बन्धाधिकार के समान अन्धस्वामित्व' समझना चाहिए।
इस प्रकार के ज्ञानमार्गणा के मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय और कवलशान तथा दर्शनमार्गणा के अवधिदर्शन और केवलदर्शन तथा संयममार्गणा के सामायिक, छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धि भेद