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तृतीय कर्मग्रन्थ परिशिष्ट
:
शरीरपर्याप्ति एवं
पूरी होने के बाद होता है । औपfee सम्यक्त्व का मन करने वाला सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्धि- अपर्याप्त और साधारण वनस्पति में उत्पस नहीं होता है, अतः उसके वहाँ सूक्ष्मत्रिक उदय में नहीं हैं ।'
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जाति - एकेन्द्रिय के समान हीन्द्रिय के भी दो गुणस्थान होते हैं । वैक्रियाष्टक, मनुष्यत्रिक, उच्चगोत्र, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, द्वीन्द्रिय के बिना एकेन्द्रिय जातिचतुष्क आहारकद्विक, आदि के पाँच संहनन, पाँच संस्थान, शुभ विहायोगति जिननाम स्थावर सूक्ष्म साधारण आतप सुभग, आदेय, सम्यक्त्वमोहनीय मिश्रमोहनीय -- इन चालीस प्रकृतियों के उदय-अयोग्य होने से सामान्यतः और मिथ्यात्व गुणस्थान में ८२ प्रकृतियां उदय योग्य हैं । उनमें से अपर्याप्त नाम, उद्योत मिध्यात्म पराधास अशुभ विहायोगति, उच्छ्वास सुस्वर, दुःस्बर इन आठ प्रकृतियों के बिना सास्वादन गुणस्थान में ३४ प्रकृतियों उदय में होती हैं, क्योंकि मिथ्यात्वमोहनीय का उदय तो वहाँ होता नहीं है और उसके सिवाय शेष प्रकृतियों का उदय शरीरपर्याप्त पूर्ण होने के बाद ही होता है और सास्वादन तो शरीरपर्याप्ति पूर्ण होने के पहले ही होता है।
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श्रीन्द्रिय और चतुरिश्रिय जातिदन दोनों मार्गणाओं में भी द्वीन्द्रिय के समान हो दी गुणस्थान होते हैं और उदवस्वामित्व भी उसके समान जानना चाहिए, किन्तु दीन्द्रिय के स्थान पर श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय समझना ।"
पंचेन्द्रिय जाति इसमें वह गुणस्थान होते हैं। जातिचतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण और आप इन आठ प्रकृतियों के बिना सामान्य से ११४
१ गो० कर्मकांड में सामान्य से पहले गुणस्थान में दूसरे गुणस्थान में ६६ (स्त्या रहित) प्रकृतियों का उदय बताया है।
-गो० कर्मकांड ३०६-३०८ २ विकलेन्द्रियों (न्द्रिय, श्रीन्द्रिय, फ्लुरिन्द्रिय) में सामान्य से पहले गुणस्थान में ५१ व दूसरे में ७१ प्रकृतियों का उदय गो० कर्मकांड में बताया है ।
-गो० कर्मकांड ३०६-३०८