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तृतीय कर्भग्रन्थ : परिशिष्ट रिणमंगोवंगतसं संहदिपंचकसमेवमिह थिराले । अवणिय थावरजुगलं साहरणयक्षमादावं ॥३०७।। खिव तसदुम्मदिदुस्सरमगोवंग सजादिसेवटै ।।
ओघ सयले साहरणिगिविगलादाक्थावरदुगुणं ॥३०॥ एकेन्द्रिय मार्गणा में तिर्थच लब्धि-अपर्याप्त की ७१ प्रकृतियों में पराचात आदि बार, पर्याप्त, साधारण, एकेन्द्रिय जाति, यश-कीर्ति, स्थानमित्रिक, स्थावर और सूक्ष्म कुल तेरह प्रकृतियां मिलाकर और अंगोपांग, बस, सवार्त संहनन, पंचेन्द्रिन इन चार को कम करमे से ८० प्रकृतियां उदययोग्य जानना । विकलाय में एकेन्द्रिय के समान १० प्रकृतियों में से स्थावर युगल, साधारण, एकन्द्रिय, आतप इन पांच प्रकृतियों को कम करके तथा प्रस, अप्रशस्तविहायोगति, दुःवर, अंगोपांग, अपनी-अपनी जाति, सेवातं संहनन, इन छह प्रकृतियों को मिलाने से उदययोग्य ८१ प्रकृतियां हैं। पंचेन्द्रिय में गुणस्थान की तरह १२२ में से साधारण, एकेन्द्रिय, विकलत्रय, आला. शानगर - 5 प्रकृतियों को कम करने पर ११४ प्रकृतियाँ ज्ययोग्य है । कायमा योगमार्गणा
एयं वा पणकाये ण हि साहरणमिणं च आदाबं ।
दुसु सद्गमुज्जावं कमेण चरिमम्हि आदादं ।।३०।। पृथ्वीकाय आदि पांचों कायों में एकेन्द्रिय की तरह ८० प्रकृतियों में से एक साधारण प्रकृति को कम करने पर पृथ्वीकार में हैं और साधारण व आतप प्रकृति को घटाने पर अलकाय में उदयोग्य ७६ तथा तेजस्काय, यायुकाय, इन दोनों में साधारण, मालप, उश्चोत- इन तीन प्रकृतियों को घटाने पर ७७ प्रकृतियां उन्द्रययोग्य हैं। वनस्पतिकाय में सिर्फ आतप प्रकृति को कम करने पर ७६ प्रकृतियां उदययोग्य हैं।
ओषं तसे ण थावरदुगसाहरणेयतावमथ ओघं । मणवयणसत्तगेण हिताविगिविमलं च थावरागुचओ ॥३१० घसकाय में गुणस्थान सामान्य को १२२ प्रकृतियों में से स्थावर आदि
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