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मार्गमाओं में स्वामित्व प्रदर्शक यन्त्र
३५ अर्धनाराच संहनन
४६ उपोत, ३६ मीलिका संहनन
४७ सिगात, এ সপশিগবি,
४८ तिर्यशानुपुर्वी, ३८ नीचकोत्र,
४६ सिबायु, ३६ स्त्रीवेद,
५० मनुष्य-भामु, ४० युग,
५१ मनुष्यमति, ४१ दुःस्वर,
१२ मनुष्मानुपूर्वो, ४२ अनादेय,
५३ औदारिक शरीर, ४३ निवा-निद्रा,
५४ औदारिक अंगोपांग, ४४ प्रचला प्रपला,
५५ बऋषभनाराच संहनन । ४५ स्यानदि,
अगले यन्त्रों में बन्ध-विच्छेद बतलाने के लिए प्रारम्भिक प्रगति से अन्तिम प्रकृति का नामोल्लेख किया जायेगा जिसका अर्थ यह है कि उस नाम वाली प्रकृति के नाम सहित अंतिम प्रकृति के नाम तक की सभी प्रकाशियों का ग्रहण करना चाहिये। जैसे देवगति से नरकायु तक लिखा होने पर इनमें देवगति, देवानुपूर्वी, क्रियशरीर, क्रिम अंगोपांम, आहारशरीर, आहारक अंमोहेपांग, देवायु, नरकगति, नरक-आनुपूर्वी, नरक आयु (२ से ११) तक की सभी प्रकृतिमों का ग्रहण होगा।