Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मार्गणाओं में स्वामित्व प्रवर्शक यंत्र
भामर से अस्पत पर्यन्त तथा नवप्रवेषक क्लोकों का स्वामित्व सामान्य बन्नयोग्य ६७ प्रकृसिया
मुणस्पान आदि के चार देवगति (२) से आतप नामकर्म (२०) तक की १६ तथा उखोत, तिर्यक___ गति, नियंचानुपूर्वी, सियंचायु ये चार- कुल २३ प्रकृतियों से विहींग -१७
मक बन्ध योग्य ! अबन्ध
पुनः बन्ध
बन्ध विच्छेद
तीर्थकरनाम
नपुसक वेद; मिथ्याख, हुँइसंस्थान, सेवाःसंहनन ४
। अनन्सानु० कोष (२५) से
स्त्यानदि (४५) तक-२१
मनुष्यायु
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तीर्थकरनाम ...... | मनुष्यायु अनुसर से सर्वार्थसिद्धि तक देवलोकों का बन्धस्वामित्व सामान्य बन्धयोग्य ७२ प्रालियों
मुणस्थान-एक (अविरत)
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Po०| बन्ध योग्य | अबन्ध
नः बन्ध
बन्ध-विच्छेद
सीकर, मनुष्यामु
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