Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तृतीय कर्मग्रम्प : परिशिष्ट
कार्मग काययोग व अनाहारक मा अन्धस्वाभिस्य सामान्म बन्धयोग्य ११२ गुणस्थान--१, २, ४, १३ (चार गुणस्थान)
आहारकद्धिक, देवायु, नरकत्रिक, मनुष्यायु, तियंचायु कुल ८ प्रकृतियों से विहीन- ११२
गु०० बन्न योग्य
पुन बध
अन्ध-विच्छेद
सूक्ष्मनाम (१२) से सेवात संहनन (२४) सकाळ १३
तीर्थकरनाम देवतिक क्रियट्रिक
अनन्ना क्रोध (२५) से सिर्वधानपूर्वी (४८) तक २४
| तीर्थकरनाम • देवादिक बैंक्रियाद्विक
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विशेष- पधपि अनाहारक मार्गणा १, ३, ४, १३ और १४ इन पात्र गुणस्थानों
में पाई जाती है, और बन्धस्वामित्व कार्मण कामयोग के समान १, २, ४
ओर १३ इन चार गुणस्थानों का बतलाया है तो इसका कारण यह है कि चौदहवें गुणस्थान में कर्मबन्ध के कारणों का सर्वथा अभाव हो जाने से किसी भी कर्म का बन्ध नहीं होता है और शेष गुणस्थानों में मिथ्यास्वादि बन्धकारण अपनी-अपनी भूमिका तक रहते हैं । अतः फार्मण काय. योग जैसा अनाहारक मार्गणा का चार गुणस्थानों में बन्धस्वामित्व बतलाया है।
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