Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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भाओं में स्वामित्व प्रदर्शक पत्र
सामान्य बन्धयोग्य १०२ प्रकृतियां
गुणस्थान - १, २, ४ (कुल तीन )
सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, डीन्द्रिय, जीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, नरकत्रिक, देवत्रिक, वैश्यद्विक, आहारक डिक, तिचा
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गु०क० ] बन्ध योग्य
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१
३
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affer काययोग का बन्ध-स्वामित्व
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अबन्ध
१
तीर्थंकर नाम
पुनः बन्ध
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१
तीर्थंकर म
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बन्ध-विच्छे
१७६
मिया, इंडसंस्थान, एकेत्रिय, स्थावर, आय, नपुंसकवेद, सेवा संहनन ७
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बन्धाधिकार में बताई गई २५ प्रकृतियों में से तियंचा को छोड़कर २४ प्रकृतिय
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विशेष यद्यपि सन्धिजन्य क्रियशरीर की अपेक्षा क्रिय और वैश्यमि काययोग में पांच और छटा गुणस्थान होना भी सम्भव है, लेकिन क्रिय काययोग में एक से चार और वैश्विमिश्र काययोग में १, २, ४, गुणस्थान मानने का कारण यह है कि यहाँ स्वाभाविक भवप्रस्थय वैक्रिय शरीर की कक्षा की गई है । इसीलिये किय काययोग में चार और क्रियमिट काययोग में १, २, यह तीन गुणस्थान माने हैं ।