Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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भाओं में यंत्र
६ संज्वलन कषायचतुष्क में से क्रोध, मान, माया का उदय मिथ्यात्व से अनिवृति गुणस्थानपर्यन्त मी गुणस्थानों में होता है, तथा लोभ का उदय दसवें सूक्ष्मसंगराय गुणस्थान तक / अतः सामान्य मे बन्ध योग्य प्रकृतियाँ १२० है तथा गुणस्थानों की अपेक्षा सम्बलन क्रोध, मान और माया का स्वामित्व बन्धाधिकार के समान पहले से लेकर नौ गुणस्थानों में ऋप ११.५. १०१ आदि मent चाहिये। संचलन लोभ दसवें गुणस्थान तक रहता है अतः नौ गुणस्थान तक तो कोष, मान और माया के बन्ध जैसा और दसवें गुणस्थान में १७ प्रकृतियों का मत्व है।
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ज्ञानमार्ग के भेद अज्ञानत्रिक (मति अज्ञान, श्रुताज्ञान, अवधि- अज्ञानविभंगज्ञान) में आदि के दो या तीन गुणास्थान होते हैं। इसमें सम्यक्त्व चारित्र नहीं होने से तीर्थंकर और आहारद्वि इन तीन प्रकृतियों के बन्धयोग्य नहीं होने से सामान्य बन्धयोग्य ११५ प्रकृतियाँ हैं और तीनों गुणस्थानों में बन्धाधिकार के सम्मान क्रमश ११० १०१.७४ प्रति बन्धयोग्य हैं ।
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा अवधिदर्शन इन चार मार्गणाओं में चौथे अविरत से लेकर बारहवें श्रीषमोहपर्यन्त नौ गुणस्थान होते है । इनमें आहारकद्रिक का बन्ध संभव है, अत: सामान्य से वे गुणस्थान की बन्यो ७.५ एकृतियों के साथ आहार को मिलाने से ७६ प्रकृतियाँ हैं, तथा गुणस्थानों में बन्धाधिकार के समान क्रमशः ७७६७ आदि बारहवें स्थान तक समझना चाहिये ।
मनःपर्यायज्ञान छठे प्रमभमंयत से लेकर बारहवें क्षीणमोहपत होता | अतः इसमें सात गुणस्थान में तथा आहारकट्टिक का बन्ध संभव होने से ६३ २ ६४ प्रकृतिय सामान्य बन्प्रयोग्य हैं और गुणस्थानों में बन्धाधिकार के समान छह से बारह तक का बन्धस्वामित्व जानना । १० केवलज्ञान और केवलदर्शन इन दो मार्गणाओं में अन्तिम दो गुणस्थानसयोगिकेवली अयोगिकेवली होते हैं। अयोगिकेवली गुणस्थान में तो बन्ध-कारण का अभाव होने से किसी भी प्रकृति का बन्ध नहीं होता है
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