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तृतीय कर्मग्रत्य परिशिष्ट
afer रहवें योगिली गुणस्थान में सिर्फ एक प्रकृति -- सातावेदनीय का बन्ध होता है ।
११ दर्शनमार्गेणा के क्षेत्र क्षुदर्शन और अदर्शन क्षायोपशमिक भाव होने से पहले से लेकर बारहवे गुणस्थान तक रहते हैं अतः इनका स्वामित्व सामान्य से और गुणस्थानों में बन्धाधिकार के समान है। अर्थात् सामान्य बन्यो १२० और गुणस्थानों में क्रमश: ११७, १०१, ७४, ७७ आदि बारहवे गुणस्थान तक सामाहिये ।
१२ संयममार्गणा के भेद अविरति में आदि के चार गुणस्थान होते हैं । चौबे गुणस्थान में सम्यक्त्व होने से तीर्थंकरनाम का बन्ध हो सकता है feng afta न होने से चारिवसापेक्ष आहारकद्रिक का बन्ध न होने से ११८ प्रकृतियों सामान्य बन्धयोग्य हैं और गुणस्थानों में बन्धाधिकार के समान पहले से चौथे तक क्रमशः ११७ १०१ ७४, ७७ प्रकृतियों का है |
१३ सामायिक, छेदोपस्थानीय ये दो संयम छटे से नौवें गुणस्थानपर्यन्त वार गुणस्थान में पाये जाते हैं । इनमें आहारकद्विकका अन्य सम्भव है | अतः छठे गुणस्थान की बन्धयोग्य ६३ प्रकृतियों के साथ आहारद्रिक को (६३ + २) जोड़ने से सामान्य से ६५ प्रकृतियां बन्धयोग्य हैं और सातवें, आठवें, नौवें गुणस्थान में क्रमशः ६२ / ५६/५८/५८ / ५६/२६. २२/२१/२०/१६/१८ का बन्धस्वामित्व समझना चाहिये ।
१४ परिहारविवृद्धि संयम में छठा और साय यह दो
संम में आहारकवि का उदय नहीं होता है, किन्तु संभव है । गुणस्थान हैं इस व्रतः योग्य ६५ प्रकृतियाँ हैं और गुणस्थानों में क्रमशः ६३, ५६/५८ Tarfect समझना
१५ सूक्ष्मसंपराय संयम में अपने नाम वाला सूक्ष्मसंयराय नामक दसव गुणस्थान एवं देश विरत संयम में अपने नाम वाला देशविरत नामक feat गुणस्थान होता है। इन दोनों का बवस्वामित्व सामान्य और गुणस्थान की अपेक्षा अपने गुणस्थान में बन्धयोग्य प्रकृतियों का है अर्थात् सूक्ष्मपराय में १७ और शक्ति में ६७ प्रकृतियाँ बन्धयोग हैं।