Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मागमाओं में शामित्व प्रदर्शक यंत्र
१७
कृष्ण, भील, कापोत लेण्याओं का अन्धस्वामित्व सामान्य बन्धयोग्य ११५ प्रकृतियाँ
गुणस्थान---आदि के मार बन्धाधिकार में कही गई १२० प्रकृलियों में आहारकद्विक से विहीन
गु•| बन्ध योग्य
प्रबन्ध
पुनः बन्ध
बन्ध-विच्छेद
| बन्धाधिकार के समान १६
तीर्थकरनाम कर्म
बन्धाधिकार के समान २५
७४
मनुष्यायु ।
तीर्थकर नाम, देव व मनुष्याधु
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कृष्णादि सीन लेश्याओं में आहारकादिक का इन्ध न मानने का कारण यह है कि इनका बन्ध सातवें गुणस्थान में ही होता है और कृष्णादि तीन लेग्यह वाले अधिक से अधिक छटे गुणस्थान सक पाये जा सकते हैं । इसीलिए इन लेश्याओं के सामान्य से ११८ प्रकृतियों का बन्धस्वामिरद माना है।
कर्मग्रन्थों में कृष्णादि तीन लेश्याओं के पौधे गुणस्थान में ७७ प्रकृतियों का बाद कहा है और इनमें मनुष्यायु के देवायु का समावेश है । लेकिन सिद्धान्त का मत है कि कृष्णादि सीन लेश्याओं के सौषे मुणस्थान में जो