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.. तृतीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट सनत्कुमार से सहस्रार पर्यन्त देवलोकों का बन्ध-स्वामित्व सामान्य बन्धयोग्य १०१ प्रकृतियाँ गुणस्थान आदि के बार
देवगति (२) से लेकर आतप नामकर्म (२०) तक की १६ प्रकृतियों से विहीन १०१
सु०० बन्ध योग्य । अबन्ध
पुन: बन्ध
बन्ध-विच्छेद
नपुंसक वेद, मिथ्याद, इंश संस्थान, सेवार्स संहनन
सीर्थकरनाम
अनन्तानुबन्धी क्रोध (२५) से लेकर तिमंचायु (४९)
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मनुष्याथु
तीर्थकरनाम मनुष्यायु
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