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लालालाmsomamiverseoniRIANATATAAI
मागंणाओं में
स्वामिस्त्र प्रदर्शक यंत्र
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एकेन्द्रिय, विकले ग्रिप (द्वीम्बिय, नौन्त्रिप, चतुरिन्द्रिय) वचनयोग, काययोग,
पृथ्वी, जल तथा वनस्पलिकाय का बन्धस्वामित्व सामान्य बन्धयोग्य १०६ प्रकाशित सुष ... हो तीर्थंकर लामफर्म (१) से मरकायु (११) तक की ११ प्रकृतियों से विहीन
गुसका बन्ध योग्य
प्रबन्ध ! पुनः बन्ध
अन्ध-विषयेव
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सूक्ष्म (१२) से लेकर मेवात संहान (२४) सक-१३
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१ किन्हीं-किन्हीं आचार्यो का मन्तव्य है कि दूसरे गुणस्थान में एकेन्द्रिय
आदि जीन मनुष्यबायु और सियचा का भी बन्ध नहीं करते हैं अस: १४ प्रकृतियों का बन्ध दूसरे गुणस्थान में मानना चाहिये । अतः मिध्यात्व गुणस्थान की विच्छिन प्रकृतियों में दो प्रकृतियों को और मिलाने पर १५ प्रकृतियाँ होती । उनको कम करने पर ६४ प्रकृतियाँ दूसरे मुणस्थान में बम्बयोग्य रहती हैं। मो० कामकोड में दूसरे गुणस्थान की अधयोग्य प्रकृतियो १४ ही मानी हैं ।