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पणातला
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तुतीय कर्मचन्म : परिसाद
नरकगति तथा रत्नप्रभा, शर्कराप्रमा, बासुकाममा नरकाय का
बन्ध-स्वामित्व सामान्य बन्धयोग्य १०१ प्रकृत्तियाँ
मुणस्थान....आदि के वार भगति (२) से लेकर आतप नामकर्म (२०) तक की १६ प्रकृतियों से बिहीन१०१
गु०० नम्धयोग्य !
बन्छ.
पुनः बन्ध
बन्ध-विच्छेद
नपुंसक वेद, मिथ्यात्व, हज संस्थान सेवात संहनन ४
सोर्थकर नाम
। अनन्ताभुबन्धी क्रोध (२५) से लेकर तिर्यंचायु (६)
१ मनुष्यायु !
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तीर्थकर मसुष्य-आयु
अबन्ध.....किसका विवक्षित गुणस्थान में बन्ध नहीं होता, लेकिन अन्य गुपस्थान में बन्ध सम्भव है ।
पुनःबन्ध—जिसका अन्य गुणस्थान में बन्ध नहीं होता है लेकिन इस गुणस्थान में बंध होता है।
Ex-विधयेय —जिसका बन्ध इस गुणस्थान तक ही होता है, आगे के गुणस्थानों में होता ही नहीं है।
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