Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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श्वेताम्बर-दिगम्बर कर्मसाहित्य के समान-असमान मन्तव्य
श्वेताम्बर-दिगम्बर क्रर्मसाहित्य के बन्धस्वामित्व सम्बन्धी समान असमान मन्तव्य यहाँ उपस्थित करते हैं.....
(१) तीसरे गुणस्थान में आयुबन्ध नहीं होने के बारे में पतामार एवं दिगम्बर कर्मसाहित्य में समानता है। श्वेताम्बर कर्मसाहित्य में तीसरे मिम गुणस्थान में आबुकर्म का बन्ध नहीं माना गया है । यही मन्सुम्य दिगम्बर कर्म-साहित्य का भी है।
(२) पृथ्वीकाय आदि मार्गणाओं में दूसरे गुणस्थान में और ६४ प्रकृतियों का बन्ध मतभेद से कर्मग्रन्थ में है सेकिन गोम्मटसार कर्मकाण्ड में केवल ६४ प्रकृतियों का बन्ध माना गया है।
(३) एकेन्द्रिय से चक्षुरिन्द्रिय' पर्यन्त पार इन्द्रिय मार्गणाओं तथा पृथ्वी, जल और बनस्पति---इन तीन काय मार्गणाओं में पहला और दूसरा यह दो गुणस्थान कर्मग्रन्थ में माने हैं । गो कर्मकाण्ड में भी इसी पक्ष को स्वीकार किया है । लेकिन सर्वार्थ सिद्धिकार का इस विषय में भिन्न मत है । ये एकेन्द्रिय आदि चार इन्द्रिय मार्गणाओं एवं पृथ्वीफाय आदि सीन काय मार्गधामों में पहला ही गुणस्थान मानते हैं।
(४) एकेन्द्रियों में गुणस्थान मानने के सम्बन्ध में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में दो पश्च हैं। सैद्धान्तिक पक्ष सिर्फ पहला शुधास्थाम और कर्मग्रन्थ पक्ष पहला, दूसरा ये दो गुणस्थान मानता है । दिगम्बर सम्प्रदाय में भी यही दो पक्ष देखने में आते हैं । सर्वार्थ सिद्धि और भो जीवकाण्ड में सैद्धान्तिक पक्ष तथा गोर कर्मकाण्ड में कर्मग्रामिक पक्ष है।
(५) औदारिकमिश्नकाययोग मार्गणा में मिथ्यात्व गुणस्थान में १७६ प्रकृतियों का बन्ध कर्मग्रन्थ की तरह गो० कर्मकाण्ड में भी माना गया है।
(६) औदारिकमिश्रकाययोग मार्गणा में अविरतसम्यष्टि को ५०