Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सृसोय कम्म : परिशिष्ट ६६ प्रकृतियां पंचेन्द्रिय तिर्गच के उपययोग्य हैं और इन ६६ प्रकृतियों में से भी स्वीय तथा अपर्याप्त इम दो को कम करने से शेष रहीं ६७ प्रकृतियाँ पर्याप्ततिबंध के उदययोग्य होती हैं।
तिर्यधनी के एल 11: HT : पुणे व मधु कावेद की कम करके और स्त्रीवेद को मिलाने से ६६ प्रकृतियाँ उदययोग्य है । उसमें भी चोथे अविरतसम्यग्टफिट शुणस्थान में तिथंचानुपूर्वी का उदय नहीं है। लब्यपर्याप्तक पंचेन्द्रिप लियंच के उक्तः ६६ प्रकृतियों में स्त्रीवेद, त्यानद्धि आदि ३, परधातादि २, तथा पर्याप्त. उद्योत. स्वर युगल, बिहायोगलियुगल, यश कीति, आदेय, समचतुरस आदि पांच संस्थान, वज्रऋषभनाराच आदि पांच संहनन, सुभग, सम्यक्त्व, सम्पमिथ्यात्व...इन १६ प्रकृलियों को कम करके तथा अपर्याप्त व नपुसकावेद इन दो प्रकृतियों को मिलाने से कुल ५१ प्रकृतियाँ उदययोग्य हैं।
मणुके ओधो पावरतिरियादावदुगएयविलिदि ।
साहरणिदरातिय बेमुब्बियछक्क परिहीणो ॥२६॥ सामान्य मनुष्य के गुणस्थानों में कही गई १३२ प्रकृतियों में से स्थावर, तिथंचगति, आतप, इन तीनों का युगल और एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिया, साधारण, मनुष्यायु के अतिरिक्त अन्य सीन आयु और क्रिय शरीर आदि छह प्रकृतियों को कम करने से शेष उदययोग्य १०२ प्रतियां हैं।
मणुसोपं वा भोगे दुःभगच उणीवसंवथीपतियं । दुग्गदितिस्थमपुण्णं संहदिसठाणचरिमपणं ॥३०२।। हारदुहीणा एवं तिरिये मणुदुच्चगोदमणुवाउं । अवणिय पविखव णीचं तिरियतिरियाउउज्जोय ।।३।०३।। भोगभुमिक मनुष्यों में सामान्य मनुष्य की ६०५ प्रकृतियों में से दुभंग आदि चार, नीच गोत्र, नपुसकवेद, स्त्यानदि आदि तीन, अप्रशस्त विहायोपति, तीर्थङ्कर, अपर्याप्ति, वज्रनाराच आदि पान संहनन, न्यग्रोधपरिमण्डल आदि पाँच संस्थान और आहारक शरीर का युगल इन्न २४ प्रकृतिमों को कम कर देने पर शेष रहीं ७८ प्रकृतियां उदययोग्य है । इसी प्रकार भोगभूमिक
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