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सूतीय कपन्य : परिशित रिफ ---इन सात प्रकृतियों को कम करने और मिश्चमोहनीम को जोड़ने से मिश्च गुणस्थान में ६६ प्रजातियों और उनमें से मिश्र मोहनीय को निकालकर सम्यक्स्य तथा आनुपुर्वीत्रिक-इन चार प्रकृतियों को जोड़ने से अभिरति शाय गुणरु ग में नहीणों होती हैं ! अधिक, अप्रत्याख्यानावरणचतुष्फ, देवगति, देवायु, नैत्रियद्विक, दुर्भग, अनादेय और अयश्च इन १४ प्रकृतियों के बिना देणविरत गुणस्थान में ८५ प्रकृतियां होती है। प्रत्याश्यानावरण चतुरुक, नियंचगति, तिथंचायु, उद्योत और नीचगोत्र इन आऊ प्रकृतियों को कम करके आहारकद्विक को मिलाने से प्रमत्तसंयत गुणस्थान में ७६ प्रकृतियाँ होती हैं। उनमें से स्त्यानद्धित्रिक और आहारकद्विक-इन पाँच प्रकृत्तियों के सिवाय अप्रमत्त गुप्पस्थान में ७४ प्रकृसिया, सम्यक्त्वमोहनीय और अंतिम तीन संहनन इन चार प्रकृतियों के बिना अपूर्वकरण गुणस्थान में :प्रकृतियाँ होती है और हास्यादि यह प्रकृतियों के बिना अनिवृत्ति गुणस्थान में ६४ प्रकृतियाँ होती हैं । ____ स्त्रोवेव-इसमें भी पुरुषवेद के समान नो गुणस्थान होते हैं और यहां सामान्य से तथा प्रमत्त गुणस्थान में आहाराविक के विना तथा चौथे गुणस्थान में आनुपूर्वीत्रिक के सिवाय शेष रहीं प्रकुतियों का उदय समझना चाहिए । क्योंकि प्रायः स्त्रीवादी के परभव में जाते समय चतुर्थ गुणस्थान नहीं होता है । अत: आनुपूर्थीत्रिक का उदय नहीं होता है और स्त्री चतुर्दश पूर्वधर नहीं होती है । इमलिया उसे आहारकद्विक का भी सवय नहीं होता है। अतः सामान्य से तथा नौ गुणस्थानों में अनुक्रम से १०५, १०३, १०२, ६६, ६५, , ७४, २० और ६४ इस प्रकार उदय समझना चाहिए । __नपुसकावेद इसमें भी नौ गुणस्थान होते हैं। इसमें देवत्रिक, जिननाम, स्त्रीवेद और पुरुषवेद, आहाराद्विक इन ८ प्रकृतियों के सिवाय सामान्य से ११४, सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय-इन दो प्रकृतियों के बिना मिथ्यात्व गुणस्थान में ११२ प्रवृत्तियाँ उदय में होती हैं। उनमें से सूक्ष्मरिक, आसप, मिथ्यात्व, नरकानुपू.-...-इन छई प्रकृतियों को कम करने पर सास्वादन गुणस्थान में १०६ प्रकृतियां होती हैं । अनन्तानुबन्धीचतुष्क, मनुष्यानुपूर्वी, तिथंचानुपूर्वो, स्थावर और जातिचतुक इन ११ प्रकृतियों के कम करने और