Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तसीय कर्मग्रन्थ : परिशिष्ट
वाले के शातार चतुष्क (तियंगति, तिर्यमानुपूर्वी, लियंधायु, उचीत) और मिध्याहृष्टि गुणस्थान के अन्त की १२ कुल मिलाकर १६ प्रकृसियों का बन्ध नहीं होता है । आहारमार्गणा में अनाहान या में कार्य योग जसा बन्धविच्छेद आदि समझना चाहिए।
उदय एवं उदीरणास्वामित्व मार्गणाओं में उदय और उदीरणा स्वामित्व का कथन करने के पूर्व निम्नाकित गाथाओं में सामान्य नियमों को बतलाते हैंगुगस्थानों में उदय प्रकृतियों
सत्तरसेपकारखचदुसहियसयं सगिगिसीदि दुसदरी। छावठ्ठि सठि णवसगवण्णास दुदासबारुदया ॥२७॥
मिघ्याइष्टि आदि चौदह गुणस्थानों में कम से ११७, १११, १००, १०४, ८७, ८१,७६, ७२, ६६, ६०, ५६, ५७, ४२, १२ प्रकृतियों का उदय
अनुषय प्रासियों
पंचेक्कारसबावीसट्ठा रसपंचतीस इगिछादालं ।
पपर्ण छप्प बितिपणसििय असीदि दुगुयाघणयण्णं ॥२७७|| मिश्याटि आदि गुणस्थानों में कम से ५, ११, २२, १५, ३५, ४१. '४६, ५०, ५६, ६२, ६३, ६५, ८०, ११० प्रकृतियाँ अनुदय रूप हैं। उपविभिन्न प्रकृतियों
पण णव इगि सत्तरसं अड' पंच च चउर छक्क छच्चेव । इगिद्ग सोलस तीसं बारस उदरे अजोगता ।।२६४
मिग्यात्व आदि चौदह गुणस्थानों में क्रमश: ५, ६, १, १७, १, ५, ४, ६, ६. १, २, १६, ३० और १२ प्रकृतियों का उदरदिस्त होता है ।
। जिन कृतियों का उदय नहीं होता है, उन्हें अनुक्ष्य कहते हैं।