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तृतीय कर्म ग्रन्थ : परिशिष्ट
नहीं होता है । पारीरपति पूर्ण होने के बाद उद्योत नाम और पराधात माम का उदय होता है । श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति पूर्ण होने के अनन्तर श्वासोमछ्वास का उपम होता है और मिथ्यात्वमोह का उदय यहाँ होता नहीं है ।
हेजस्काय, कासुकाय-- इनमें पहला गुणस्थान होता है। तेजस्काय में अपकाय की '४४ तथा अग्रोस और यश-कीति इन ४६ प्रकृतियों के सिवाय ७६ प्रकृतियों का सथा वायुकाम में ऋिप शरीर सहित ७७ प्रकृतियों का उदय होता है।
बनस्पतिकाय... इस मागंणा में दो गुणस्थान होते हैं। एकेन्द्रिय मागणा में कही बाई ४२ प्रकृतियों और आतपनाम के अतिरिक्त सामान्य से और मिथ्यात्व गुणस्थान में ७६ और सास्वादन गुणस्थान में ७२ प्रकृतियाँ जदय में होती हैं।
सकाय इसमें चौदह गुणस्थान होते हैं । उसमें स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, आसप और एकेन्द्रिय जाति इन पांच प्रकृतियों के अलावा सामान्य से ११७ व आहारकविक, जिननाम. सम्यक्त्वमोहनीय और मिधमोहनीय इन पाँच प्रकृतियों के बिना मिथ्यात्व गुणस्थान में ११२ प्रकृतियां अक्ष्य में होती हैं । उनमें से मिथ्याल, अपर्याप्त और नरकानुपूर्वी-इन तीन प्रकृतियों को कम करने से सास्वादन गुणस्थान में १०९ प्राप्तियां होती हैं। उनमें से अनन्तानुबन्धीचतुष्क, विकलेन्द्रियनिक और आनुपूर्वी चिक-इन दस प्रकृतियों का उदयविकछेद होता है और मिश्रमोहनीय को मिलाने पर मिश्र गुणस्थान में १०० प्रकृतियाँ उदय में होती हैं। आनुपूर्वीचतुष्क और सम्यक्त्वमोहनीय इम पाँच प्रकृतियों को मिलाने और मिश्रमोहनीय को कम करने पर अविरत सम्यग्दृष्टि गुणल्यान में १०४ प्रकृतियाँ उयय में होती हैं। देशविरत आदि गुणस्थानों में सामान्य उदयाधिकार में कहा गया ८७, ८१, ७६, ७२, ६६, ६०, ५६, ५७, ४२ और १२ प्रकृतियों का उदय प्रामाः समझना चाहिए ।
प्रमोमोग-यहाँ तेरह गुणस्थान होते हैं । स्थावरचतुष्क, जातिचतुष्क, भातप और आनुपूर्वीचतुष्का-...इन तेरह प्रकृतियों के सिमाय सामान्य से १०६ प्रकृतियां उदय में होती हैं। आहारकतिक, जिनगाम, सम्यक्त्व और मिन इन पांच प्रकृतियों के अलावा मिथ्यात्व गुणस्थान में १२४ प्रकृतियाँ,