Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मर्गणाओं में जय-जवीरण ससा स्वामित्व
प्रकृतियों उदय में होती हैं। उनमें से आहारकविक, जिननाम, सम्यक्त्व और मिश्मात्यमोहमीय-इन पांच प्रकृतियों को कम करने पर मिया गुणस्थान में १०६ प्रकृतियां उदय में होती हैं तथा मिथ्यात्वमोहनीय, अपर्याप्त और नरकानुपूर्वी....इन तीन प्रकृतियों के सिवाय सास्वादन गुणस्पन मे १०६ अनि
। बागुमधाचतुष्क और अनुपूर्वीत्रिक इन सात प्रकृत्तियों के बिना और मित्र मोड्नीय को मिलाने से मि गुणस्थान में १०३ प्रकृतियां उदय में होती हैं । मित्रमोहनीय को कम करने और भार आनुपूर्वो तथा सम्यक्त्वमोहनीय को संयुक्त करने पर अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में १०४ प्रकृतियां होती हैं ! अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क, वैक्रियाष्टका, मनुष्यानुपूर्वी, तिथंचानुपूर्ची, दुर्भग, अनाव और अयशकीति इन १७ प्रकृ. सियों के सिवाय देशविरप्त गुणस्थान में १५ प्रकुत्तियां उदय में होती हैं और छ गुणस्थान से लेकर धौरहवें गुणास्थान तक मनुष्यगति के समान ८१,७६, ७२, ६६, ६०, ५६, ५७, ४२, और १२ प्रकृतियों का उदवस्वामित्व समझना चाहिए।
पृथ्वीकाय ... इस मार्गणा में ऐकन्धिय की तरह दो गुणस्थान समझना पाहिए । ऐकेन्द्रिय मार्गणा में कही गई ४२ प्रकृतियां और साधारपनाम के सिवाय सामान्य हो और मिध्यान्त्र नपस्थान में ६ प्रकृतियों का उदय होता है । सूक्ष्म, लब्धि-अपर्याप्त, मातर, उचौत, मिथ्याश्य, पराधात, मासोच्छ्यास इन सात प्रकृतियों के बिना सास्वादन गुणस्थान में ७२ प्रकृतियों उदय में होती हैं । सास्वादन गुणस्था करण-अपर्याप्त पृथ्वीकायादि को होता है. किन्तु समिध-अपर्याप्त को नहीं होता है।
अपाय-पृथ्वीकाय के समान यहाँ भी दो मुणस्थान होते हैं । पृथ्वींकाय मागंणा में कही गई ४३ अकृतियाँ और आतपनाम के सिधाय सामान्य में और मिथ्यास्त गुणस्थान में प्रकृतियों का उदय होता है। ममें सूक्ष्म, अपर्याप्त, उयोत, मिथ्यात्व, पराधात और उच्छवास इन छह प्रकृतियों के अलाश सास्वादन गुणस्थान में ७२ प्रकृतियां होती है। क्योंकि भूम, ऐकेन्दिर और लब्धि-अपर्याप्त में सम्यक्त्व का उदवमन करने वाला कोई जीव उत्पन्न नहीं होता है । अतएव सास्वादन गुणस्थान में सूक्ष्म और अपर्यास नाम का अवय