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माणाओं में उदय-बधीरणासला-स्वामित्व
लीन पंद, क्रोध, भान, माया.. इनमें मनुष्यगतिमार्गणा की तरह नी गुणस्थान तक सत्ता समझना चाहिये।
लोभ-ग्रही मनुष्यगति के समान व मुणस्थान तक ससा समझना चाहिए ।
भतिज्ञान, भुतहान और अधिमान-इम तीन मागंणाओं में ममुम्बपतिमागंणा के समान पौधे से लेकर भारहो मुणस्थान तक ससास्वामित्व समझना चाहिए।
मनापर्यवशान –यहां सामान्य से तिर्यंचायु और नरकायु के सिवाय १४६ प्रकृतियों की सस्ता होती है और छठे गुस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान तक मनुष्यगतिमाया के समान सत्तास्वामित्व जानना चाहिए ।
केवलशान... यहाँ मनुष्मगति के समान अन्तिम हो गुणस्थानों में कहा गया सत्तास्वामित्व समझना चाहिए ।
मस्यज्ञान. भूताशान और त्रिभंगज्ञान----इनमें सामान्य से और मिथ्याल्न गणस्थान में १४८ और दूसरे, तीसरे गुणस्थान में जिननाम के बिना १४५ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
सामायिक और खेवोपस्थानीय...इन दो मार्गणाओं में सामान्य से १४८ प्रकृतियों की सत्ता होती है और इसमें छठे गुणस्थान से लेकर नौ स्थान तक मनःपवाममार्गणा को समान सत्तास्वामित्व समझना चाहिए ।
परिहारविशुद्धि.....इसमें छठं और सातवें गुणस्थान में काहे गये अनुमार सत्तास्वामित्व समझना चाहिए।
सूक्ष्मसंपराय-इसमें सामान्य से तिचा और परकायु के सिवाय १४६ प्रकृतियों की सत्ता होती है अश्व अनन्तानुबन्धी मनुष्क की विसंयोजना करने वाले को अनन्तानुबन्धीचतुष्क, लियंचायु और नरकायु इन छह प्रकृलियों के सिवाय १४२ प्रकृतियों की सत्ता होती है।
यथास्यात—यहाँ ग्यारह से लेकर चौदहा गुणस्थान तक सत्तास्वामित्व मनुष्यगतिमार्गगा के समाम समझना चाहिए।
देशविरत...यहाँ सामान्य से १४८ प्रकृतियां सत्ता में होती हैं। इसमें एक पाचवा गुणस्पाम ही होता है और उसमें मनुष्यगति के समान सत्तास्वामित्व समझना चाहिए।