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मार्गणाओं में उषध उदीरणा-सत्ता स्वामिस्व
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मिथ्यात्व से रहित सास्वादन में १०३. अनन्तानुश्रीचतुष्क को कम करने और मन को मिलाने पर मिश्र गुणस्थान में १०० तथा मिश्रमोड़fre को कम करने और सम्यक्त्वमोहनीय को छोड़ने पर अविरतम्यष्ट गुणस्थान में १००, अप्रत्यास्थानावरणचतुष्क वैदिक देवगति देवायु, नरकति नरकायु दुर्भग, अनादेय और अवश - इन तेरह प्रकृतियों के सिवाय देशविरस गुणस्थान में ५७ प्रकृतियां उदय में होती है। शेष रहे गुणस्थानों में मनुष्यगति मार्गणा के समान उदय समझना चाहिए ।
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वचनयोग यहाँ तेरह गुणस्थान होते हैं । स्थावरचतुष्क एकेन्द्रिय जाति आतप और आनुपूर्वीक --- इन दस प्रकृतियों के सिवाय सामान्य से ११२. आहारकविक, जिननाम. सम्यवत्व और मिश्र - इन पाँच प्रकृतियों के fear मिथ्यात्व गुणस्थान में १०७ मिध्यात्वमोहनीय और विकलेन्द्रियत्रिक इन चार प्रकृतियों के सिवाय सास्वादन गुणस्थान में १०३ प्रकृतियों होती है । यद्यपि विकलेन्द्रिय को वचनयोग होता है, परन्तु भाषापर्याप्ति पूर्ण होने के बाद ही होता है और सास्वादन से मरीरपर्याप्ति पूर्ण होने के पहले होता है। इसलिए दस मागंणा में सास्वादन गुणस्थान में वचनयोग नहीं होता है । अतएव विकलेन्द्रियत्रिक निकाल दिया है। उसमें से अनन्तामुarates को कम करने और मिश्रमोहनीय को मिलाने पर मिश्र गुणस्थान में १०० प्रकृतियाँ उदय में होती है | अविरतसम्यष्टि से लेकर आगे के गुणस्थानों में मनोयोग मार्गणा के समान समझना चाहिए।
काययोग- इस मार्गणा में तेरह गुणस्थान होते हैं। इसमें सामान्य से १२२. मिध्यात्व गुणस्थान में ११७ सास्वादन में १११ इत्यादि मामान्य उदयाधिकार में कही प्रकृतियों का उदय समझना चाहिए ।
पुरुषबेब इसमें नौ गुणस्थान होते हैं । नरकविक, जातिचतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, आतप अपर्याप्त जिननाम, स्त्रीवेद और नपुंसक इन १५ प्रकृतियों के सिवाय सामान्य से १०७ प्रकृतियों का उदय होता है । उनमें से बाहारकद्विक, सम्यक्त्व और मिश्र इन चार प्रकृतियों के अलावा मिथ्यात्व गुणस्थान में १०३ प्रकृतियाँ, मिथ्यात्व प्रकृति के बिना सास्वादन में १०२ प्रकृतियाँ, उनमें से अनन्तानुबन्धचतुष्क और जानुपूर्थी
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