Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तृतीय कर्भप्राय : परिशिष्ट
मान, माया और लोम --यहाँ उदयस्वामित्व पूर्ववत् समझना चाहिए । परन्तु मान और माया कषाय माणा में नौ गणस्थान होते हैं । इसी प्रकार अपने सिवाय अन्य तीन कषायों की बारह प्रकृतियां भी कम करनी चाहिए। जैसे कि मान माणा में अन्य तीन कषाय के अनन्सानुबन्धी आदि बारह भेद और जिननाम—इन तेरह प्रकृतियों के सिवाय सामान्य से १०९ प्रकृतियाँ उदय में होती हैं । इसी प्रकार अन्य ऋषायों के लिए भी समझना चाहिए । लोभ मार्गणा में इस. गुणस्थान में तीन वेवों को कम करने पर ६० प्रकृतियाँ उदय में होती हैं।
मति, भूत और अवधि शान. यहां चौथे से लेकर बारहवें तक मौ गुणस्थान होते हैं । सामान्य में १.६ प्रवृत्तियाँ उदययोग्य हैं । आहारकनिक के सिवाय अविरत गुणस्थान में १०४ और देशविरत आदि गुणन्यानों में सामान्य उदयाधिकार के अनुसार क्रमशः ८७, ८१,७६, २२, ६६, ६०. ५६ और ५७ का अदयस्वामित्व समझना चाहिए।
मनःपर्यायजाम ---- इस मार्गणा में प्रमत्त गुणस्थान से लेकर बारहः गुणस्थान तक सात गुणस्थान होते हैं, इसलिए सामान्म से ५१ और प्रमादि गुणस्थानों में अनुभम से +१,७६, ७२, ६६, ६५, ५६ प्रकृतियाँ उदय में समलनी चाहिए।
केवलमान-...इस मार्गणा में तेरहवां और भावहां ये दो गुणस्थान होते हैं। उनमें सामान्यतः ४२ और १२ प्रकृतियां अनुक्रम से समझना चाहिए । ___ मलि-अज्ञान और अत-अजाम-यहाँ आदि के तीन गुणस्थान समझना चाहिए । आहारकद्विक, जिननाम और सम्यक्त्वमोहनीय के बिना सामान्य से और मिथ्यात्व गुणस्थान में ११८, सास्वादन गुणस्थान में १११ और मिश्र गुणरथान में १०० प्रकृतियां उदय में होती हैं ।
विमंग जान....यहाँ भी पूर्व कथनानुसार तीन गुणस्थान होते हैं । आहारकदिक, जिननाम, सम्यक्त्व, स्थावरचतुष्क, जातिचतुष्क, आतप, मनुष्यानुपूर्वी और तियंचामपूर्वी इन पन्द्रह प्रकृतियों के सिवाय सामान्य से १०५ प्रकृतियाँ उपययोग्य होती है। मनुष्य और तिर्थच में विग्रहगति से विभंगशाम' सहित नहीं उपजता है. ऋजुगति से उपजता है, अतएव यहीं मनुष्यानुपूर्वी और सियंचानुपूर्वी का निषेध किया है । मिथ्यात्व गुणस्थान में मिश्रमोहनीय के सिवाय १०६