Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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UruaruwelkewiswavidyaiikiVM100000000mikankviovbecणदेशालारसपाराश
मार्गणाओं में उपय-उदोरक्षा-ससा-स्वामित्व
मिश्रमोहनीय को पिलाने पर मिश्र स्थान में ६ प्रकृत्तियों और मित्र. मोहनीय के क्षय व सम्यकस्व व मरकानुपूर्वी के उदयोग्य होने से विस्त सम्बरष्टि गुणस्थान में ६७ प्रकृतिमा उदय में होती हैं। उनमें से अत्यारुपानाबरणचतुष्क, नरकधिक, वैक्रियादिक, दुभंग. अनाये और अय -इन बारह प्रकृतियों के बिना देणविरत गुणस्थाम में ८५ प्रकृतियां होती हैं । सिर्वचगति, सियंत्रामु, नीमगोत्र, उद्योत और प्रत्यासमतावरणचतुगक - इन आ3 प्रकृतियों को कम करने से ७५ प्रकृतियाँ प्रमत्त गुणस्थान में होती हैं। स्स्यानक्षित्रिक... इन तीन प्रकृतियों के सिवाय अप्रमत्त गुणस्थान में ७४ प्रकृतियाँ, सम्यक्त्वमोहनीय और अंतिम तान संहनन-इन सार प्रकृतियों के बिना अपूर्वकरण शुणस्थान में ७० प्रकृतियों और हास्याविषद के के बिना अनिति गुणस्थान में ६४ प्रकृतियाँ उदय में होती हैं ।
क्रोध-..यहाँ नौ गुणस्थान होते हैं । मान-..-४, माया.४, लोभ-... और जिननाम- इस तेरह प्रकृतियों के विमा सामान्य से १०६, साम्यवस्क, मिथ और आहारकाद्विक-.-इन ४ प्रकृत्तियों के बिना मिथ्यात्व गमस्थान में १०५, रामविक, आतप, मिथ्यात्व और नरकानुपू:-- इन छह प्रकृतियों के बिना सास्वादन में १ प्रकृतियाँ उदय में होती है । अनन्तानुबन्धी शोध, स्थाकर, आतिश्चक और आनुपूर्वीविक-इन मो प्रकृतियों को कम करने
और मिश्रमोहनीय को मिलाने पर मिन गुणस्थान में ६१ प्रकृसियों, उनमें से मिश्रमोहनीए को कम करने और सम्धस्यमोहनीय तथा आनुपूर्वीयतुटक को मिलाने पर अविरत गुणास्थान में १५ प्रकृत्तियां, उनमें से अप्रत्यारत्यान्दावरण क्रोध, आनुपूर्वीचतुष्क, देगति, देवायु, नरकमति नरकायु, वैत्रिय विक, दुर्भग, अनादेय और अयय...-इन फौदह प्रकृतियों के बिना देशविरस गुणस्थान में ८१ प्रकृतियाँ होती है । विर्यधगति, तिथंचायु, उद्योत, नीचगोत्र और प्रत्याख्यानावरण क्रोध--- इन पांच प्रकृतियों के न्यून करने और आहारकविक के मिलाने पर प्रमत शुषस्थान में ८ प्रकृत्तियों होती हैं। स्स्यानद्धित्रिक और आहारकतिक-इन पांच प्रवासियों को कम करने पर अप्रमत गुणस्थान में ७३ प्रतियो, सम्यवस्वमोहनीय और अन्तिम लोन संहनन-इन चार प्रकृतियों के बिना अपूर्वकरण गुणस्थान में ६६ और हास्यादिषट्क बिना अनिवृत्ति गुणस्थान में ६३ प्रकृतियाँ उदय में होती हैं।