Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
एग्
अतएव उक्त शंका के सम्बन्ध में जब तक दूसरा प्रामाणिक माधान न मिले, तब तक यह समाधान मान लेने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि कृष्ण आदि तीन लेया वाले सम्यष्टि के जो प्रकृति में देवrg की गणना की गई है वह कर्मग्रन्थ सम्बन्धी मत है, संद्धान्तिक मत नहीं है।
कर्मग्रन्थ और सिद्धान्त का कई विषयों में मतभेद है। इसलिए इस कर्मग्रन्थ में भी उक्त देवायु का बन्ध होने न होने के सम्बन्ध में कर्मग्रन्थ और सिद्धान्त का मतभेद मानकर आपस में विरोध का परिहार कर लेना उचित है ।
1
इस प्रकार कृष्ण, नील कापोत इन तीन अशुभ श्याओं का बन्धस्वामित्व बतलाने के बाद अब तेज, पद्म और शुक्ल – इन शुभ श्याओं का बन्धस्वामित्व बतलाते हैं ।
तेजोलेश्या पहले मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर सातवें गुणस्थान तक पाई जाती है और नरकनवक - नरकगति, नरकानुपूर्वी, नरकआयु, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारणनाम, द्वीन्द्रिय, चीन्द्रिय और चतुरि न्द्रिय इन नौ प्रकृतियों का बन्ध अशुभ लेश्याओं में होने के कारण तेजोलेश्या धारण करने वालों के उक्त नो प्रकृतियों का बन्ध नहीं होने से और तेजोलेश्या वाले उन स्थानों में पैदा नहीं होते जिनमें नरकगति, सूक्ष्म एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में उक्त प्रकृतियों का उदय होता है, अतः तेजोलेश्या में सामान्य से १११ प्रकृतियों का बन्ध
१. सासणभावे नाणं विश्व्वगाहारये उरलमि दिसासाणो नेागिवं सुथमयं
।
wwwww
英
सासादन अवस्था में सम्यग्ज्ञान, क्रियशरीर बनाने के समय औदारिकमिश्व काययोग और सासादन गुणस्थान का अभाव यह तीन बातें यद्यपि तथापि इस ग्रन्थ में इनका अधिकार नहीं है ।
— कर्मग्रन्थ ४४£
तथा आहारक शरीर
एकेन्द्रिय जीवों में
सिद्धान्त सम्मत हैं
wwwww
wwwwwwwwww.
wwww