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मार्गणाओं में उदय-उधोरण ससा-स्वामित्व
स्थावर नाम, एकन्दियादि जातिचतुक और तिर्थबानुपूर्वीइन दस प्रकृतियों को कम करने पर और मिथमोहनीय को जोड़ने से मिथ गुणस्थान में ६१ प्रकृतियाँ उदय में होती हैं। उनमें से मिधमोहनीय के कम करने और सम्यकस्यमोहनीय तघा तिथंचानुपूर्वी-इन दो प्रकृतियों को मिलाने में अविरत गुणस्थान ग ६२ अक्षर में होती हैं । अप्रस्थाच्यानावरणचतुष्क, दुर्भग, अनादेय, अपश और नियमानुपूर्वी इन आठ प्रकृत्तियों के सिवाय देणाविरति मुणस्थान में ८४ प्रकृतियाँ उदय में होती हैं ।
यहीं नर्वत्र नन्धिप्रत्यय वैक्रिय शरीर को विवक्षा नहीं की है, अतएक नै क्रिय शरीर. वैकिर अंगोपांग इन दो प्रकृतियों को सर्वत्र काम समाना बाहिए।
मनुष्यगति- इसमें चौदह गुणस्थान होते हैं। देवत्रिक, नरकनिका, बैंक्रियधिक बालिबतष्क तिर्यचत्रिक, उझोत, स्थावर, मुक्ष्म, साधारण और आतप----इन २० प्रकृतियों का उदय मनुष्य के होता नहीं है, इसलिए उनको कम करने पर सामान्य से १०२ प्रकृतियाँ सदय में होती हैं । परन्तु मधिनिमिसक बैंक्रिए शरीर की अपेक्षा उसरवैक्रिय शारीर करने पर बैंक्रियतिक और जात नाम का उदय होने से इन तीन प्रकृत्तियों सहित १५ प्रकृतियाँ भी उदय में हो सकती है। लेकिन उनकी यहाँ अपेक्षा नहीं की गई है । यहाँ सामान्य से जो १.२२ प्रकृत्तियाँ उदय में आती हैं, उनमें से मिथ्यात्व गुणस्थान में आहारकाद्वक, जिमनाम, सम्मान और मिथमोहनीय --इन पाच प्रकृत्तियों का उदय नहीं होने से, उन्हें कम करने पर २ प्रकृतियाँ उदन में होती हैं । अपर्याप्तनाम और मियामोहनीय—इन दो प्रकृतियों के मिवाय सास्वादन मुणस्थान में ९५ प्रकृतियाँ उदर में होती हैं। उनमें अनन्तामुबन्धी चतुष्क और मनुष्यानुपूर्नी इन पांच प्रकृतियों को कम करने और मिश्र मोहनीय को जोड़ने पर मिथ गुणस्थान में ६१ प्रकृतियां हैं तथा इनमें से मित्रमोहनीय को कम करने तथा सम्यक्त्यमोहनीय एवं मनुष्यानुपूर्षों को मिलाने पर अविरत सम्यष्टि गुणस्थान में ९२ प्रकृतियां उदय में होती हैं। अप्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क, मनुष्यानुपूर्वी, दुमंग, अनादेश, अयाःकोति और नीधगोत्र इन 8 प्रतियों के सिवाम देशविरत मुस्थान में १३