Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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तृतीय कर्मा अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में देवायु सहित ७० प्रकृतियों को एवं मनुष्य मिश्रगुणस्थान में ६९ और अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तीर्थकर नामकर्म और देवायु सहित ७१ प्रकृतियों को बाँधते हैं। चौथे गुणस्थान की इन ०१ प्रकतियों में मनुष्यद्विक, औदारिकद्धिक, बऋषभनाराच संहनन और मनुष्यायु इन छह प्रकृतियों को मिलाने में कर्मस्तव बन्धाधिकार में सामान्य मे कही गई ७७ प्रकृतियों का तथा यहाँ पप्ति मनुष्य और तिर्यचों को तीसरे गुणस्थान में जो ६६ प्रकृतियों का बग्ध कहा गया है, उनमें पहले कही गई मनुष्यद्विक आदि छह प्रकृतियों में से मनुष्यायु के सिवाय शेष पाँच प्रकृतियों को मिलाने से ७४ प्रकृतियों का बन्ध समझा जा सकता है।
पर्याप्त मनुष्य के पहले से चौथे गुणस्थान तक का बन्ध. स्वामित्व पूर्वोक्त प्रकार में समझना चाहिए और पांचवें से लेकर तेरहवें गुणस्थान पर्यन्त प्रत्येक गुणस्थान में दूसरे कर्मग्रन्थ के बन्धाधिकार में कही मई बन्धयोग्य प्रकृतियों के अनुसार उतनीउतनी प्रकृतियों का बन्ध समझ लेना चाहिए। जैसे कि पाँच गुणस्थान में ६७, छठे गुपास्थान में ६३, सातवें में ५६ या ५८ इत्यादि। विशेष जानकारी के लिए दूसरे कर्मग्रन्थ का बन्धाधिकार देख लें।
पाँच गुणस्थान में पर्याप्त मनुष्य के ६.३ प्रकृतियों का और पर्याप्त तिर्यंच के ६६ प्रकृतियों का बन्ध बतलाया गया है तथा दूसरे कर्मग्रन्ध में पांचवें गुणस्थान में ६७ प्रकृतियों का बन्ध बतलाया गया है तो इस भिन्नता का कारण यह है कि पर्याप्त तिर्यचों के चौथे मुणस्थान में सम्यक्त्य होने पर भी तीर्थङ्कर नामकर्म के बन्धयोग्य अध्यवसायों के न होने से ७० प्रकृतियों का बन्ध बताया गया है और उन ७० प्रकृतियों में में अप्रत्यास्थानावरण कफायचतुष्का को कम करने से ६६ प्रकृतियों का बन्ध कहा गया है
जबकि पर्याप्त मनुष्य चौथे गुणस्थान में तीर्थङ्करनामकर्म का भी :: बन्ध कर सकते हैं । अतः सामान्य से बन्धयोन्य ७१ प्रकृतियों में से